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भाग -१
पात्र-राकेश(सुमन के पापा)
कुसुम-(राकेश की पत्नी)
सुमन -नायिका (अपाहिज)
राकेश का एक सपना था कि,वो अपनी होने वाली सन्तान को बैडमिंटन खिलाड़ी बनाए।
यह सपना राकेश के पिताजी का था,जो उन्होंने राकेश के लिए देखा था, परन्तु उसके बचपन में ही पिताजी के गुजर जाने के बाद उसके सपने टूट गए थे।अब आज अपने पिता के सपने को राकेश पूरा करना चाहता था।
राकेश की की पत्नी गर्भवती थी और १० दिन बाद ही उसे संतान होने वाली थी। एक दिन राकेश ने पत्नी से कहा-मुझे बेटा हो या बेटी,कोई फर्क नहीं पड़ता..हां,बस मेरा एक ही सपना है वह मेरे सपने को पूरा करे।’ इतना कहकर राकेश उस रात सो गया।
कितनी उम्मीद थी राकेश को अपनी होने वाली संतान से..और हो भी क्यों न, हर पिता अपनी संतान में ही अपना सपना देखता है।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और फिर वह घड़ी आ गई जिसका इंतजार राकेश कर रहा था। अचानक उसकी पत्नी का दर्द बढ़ने लगा और यह देख राकेश ने उसे नजदीक के एक अस्पताल में भर्ती कराया,जहां डॉ. साहिबा उसकी पत्नी को आपरेशन थियेटर में ले गई।
ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़े राकेश की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था,वह खुशी के मारे पागल हो रहा था..
उसे उसके सपने दिखाई दे रहे थे और उसे पूरा करती उसकी संतान……….।
अचानक आपरेशन थियेटर खुला और डॉ.साहिबा ने पूछा-इस मरीज के साथ कौन है?
राकेश ने जवाब दिया-‘डॉ.साहिबा मैं हूँ।’
डॉक्टर ने उससे कहा-‘ये मामला काफी गम्भीर है,हम माँ और बच्चे में से किसी एक ही को बचा सकते हैं …।’
डॉक्टर के ऐसा कहते ही जैसे राकेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया..उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था,जैसे किसी ने राकेश की पूरी दुनिया उजाड़ दी हो। ऐसे लग रहा था कि,उसका जीवन स्थिर-सा हो गया है..आंखों से बह रहे आंसू उसके दर्द को बयां कर रहे थे।
और आखिर करे तो क्यों न, एक तो इतना बड़ा सदमा लगा था उसे
और डॉक्टर के सवाल ने उसे जीवन में आज उस दोराहे पर खड़ा कर दिया था, जहां वह सोचे तो क्या सोचे..! एक तरफ उसकी धर्मपत्नी थी,जिसे सात फेरे लेते वक्त सात जन्मों के रिश्ते निभाने का वादा किया था उसने, और एक तरफ खड़ा था उसका और उसके पिताजी का सपना..जिसका वो कई वर्षों से इंतजार कर रहा था।
बार-बार भगवान से पूछ रहा था-अब तू ही बता,मैं अपने सपने को पूरा करुं,या फिर अपना वादा निभाऊँ..तू ही कोई रास्ता दिखा भगवान…….।
आखिरकार मजबूर राकेश ने कड़ा फैसला लिया कि,वह अपने सपने को तोड़ेगा,परंतु पत्नी को दिया वादा पूरा करेगा।
उसने अपने आंसू पोंछते हुए डॉक्टर से कहा-‘डॉक्टर साहिबा,मुझे पत्नी चाहिए, संतान नहीं………..।’
ये शब्द उसने कह तो दिए,परन्तु उसकी आँखों से निकल रही आंसू की बूंदें उसकी वेदना को प्रकट कर रही थी।
वो रो रहा था एक कोने में बैठकर…।
इधर पत्नी, पति की यह पीड़ा सहन नहीं कर पा रही थी..वह ऑपरेशन थिएटर में बोली-‘डॉ.साहिबा,मुझे मेरा जीवन नहीं चाहिए,मुझे अपनी होने वाली संतान का जीवन चाहिए,जिससे मेरे पति के सपने जुड़े हैं। मेरे जीवन के कुछ ही वर्ष बचे हैं,उतने दिन तक मुझे और मेरे पति को अपनी संतान का हत्यारा बनकर नहीं
जीना। अभी तो उस संतान को पूरी दुनिया देखनी है,और हम अपना जीवन बचाने के लिए उसकी गर्भ में हत्या कर दें..नहीं डॉ. साहिबा नहीं….।’इतना कहकर वह रोने लगी
डॉ साहिबा ने कहा-‘हम डॉक्टर हैं, और हम ऐसा नहीं कर सकते,आपके पति ने हमें कहा है कि,हम पत्नी को बचाएं।’
इन हालातों में भी पत्नी द्वारा बार-बार अपनी संतान का जीवन माँगता देख डॉ. साहिबा का हृदय पिघल गया। तब उन्होंने बच्चे को बचाने का निर्णय लिया और फिर उसकी पत्नी की स्थिति देखकर ऑपरेशन शुरू किया गया।
………लगभग 3 घंटे चले आपरेशन के बाद पत्नी कुसुम ने एक बेटी को जन्म दिया………….परन्तु वो अपाहिज थी। उसका दाहिना हाथ काम नहीं कर रहा ,और न ही वह बोल पा रही थी….(शेष अगले भाग में)।
#विक्रांतमणि त्रिपाठी
परिचय : विक्रांतमणि त्रिपाठी एक लेखक के रुप में सामाजिक समस्याओं को उकेरते हैं,ताकि आमजन उस पर सोचेंं। उत्तरप्रदेश के जिला-सिद्धार्थनगर में ग्राम मधुकरपुर में रहते हैं। आपने एम.ए.(भूगोल)किया है और वर्तमान में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई जारी है। आप एक एनजीओ में कार्यरत हैं। रुचि समाजसेवा,कविता लेखन और विशेष रुप से कहानी लिखने में है।
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