आज सुबह-सुबह एक घटना घट गयी बड़ी,
गर्म करने रखे दूध की रबड़ी बन गयी ।
हुआ यूं कि सुबह के समय मैं क्लास में बैठा था,
जहाँ बढ़ रही प्यास ने मुझे चारों ओर से ऐंठा था ।
अब बढ़ती हुयी प्यास, अंदर से इतनी बढ़ गयी थी कि मुझे क्लास से बीच में ही उठना पड़ा,
और अनचाहे मन से ही सही पर घर की ओर मुड़ना पड़ा ।
अब मैंने घर आकर पानी छानने को जैसे ही छन्ना उठाया
छन्ने के साथ-साथ मुझे रात का बचा दूध भी नज़र आया ।
तो सोचा, पानी के साथ दूध का काम भी निपटा लेते हैं,
दूध आग पर चढ़ाकर ही, पानी छान लेते हैं ।
पर बलिहारी है मेरे दिमाग की,
कि मैंने पानी तो छानकर पी लिया,
लेकिन दूध वहीं चूल्हे पर छोड़ अपनी अगली क्लास को हो लिया ।
अब ४०-४५ मिनट की क्लास पूरी करके हम जैसे ही घर आए,
सोचा, चलो रसोईघर में चलें, और कुछ खाएं ।
पर जब हम रसोईघर में गये तो वहाँ गज़ब ही हो गया था
क्योंकि अब वह दूध, दूध न रहकरके रबड़ी हो गया था ।
फिर क्या था, उस रबड़ी में हमने शक्कर मिलाई
और यार, दोस्तों के साथ बैठकर बड़े ही ठाट से खाई ।
लेकिन इस घटना से मुझे एक बात और समझ आई
कि दुनिया में न, हर काम ध्यान से ही होता है ।
इसलिए तो जब ध्यान नहीं होता तो एक कप चाय भी हम ढ़ग से नहीं बना पाते,
और जब ध्यान होता है तो बड़े बड़े कामों को भी चुटकियों में हैं निपटाते ।
दरअसल ये सब ध्यान की ही बलिहारी है जो कठिन से कठिन काम को आसान…
और आसान से आसान काम को भी कठिन बनाता है ।
इसलिए काम करें, आराम से… पर ध्यान से…..
साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)