घुटुवन के बल जाए के,
माखन में अंगुरी डूबाए के
कछू खाए रहे,कछू गिराए रहे,
माखन चोर लीला रचाए रहे।
ग्वाल-बालन के टोली बुलाए के,
छींके तक टीला बनवाए के
खुद खाए रहे,सबन के खिलाए रहे,
माखन चोर उड़दंग मचाए रहे।
सब सखन के संग मिलाय के,
जमुना के तट पर डेरा जमाय के
गुलेल से मटकी चटखाए रहे,
नटखट गोपियन के सताए रहे।
गइयन के झुंड लइ जाय के,
सघन कुंज बीच छितराइ के
अधरन पर मुरली सजाय रहे,
मुरारी सबन के सुध बिसराए रहे।
गोपियन संग रास-रंग रचाए के,
राधा प्यारी की निदिंया चुराए के
गोकुल के आंसुअन में बाहाए रहे,
कृष्ण मथुरा जावन की राह बनाए रहे।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।