एक अप्रैल को ही मूर्ख
दिवस क्यों मनाते हैं,
तीन सौ चौसठ दिन
क्या होशियार हो जाते हैं?
मुझे तो बचपन से
मुर्ख बनाया जा रहा है,
चांदी के बदले गिलट का
टुकड़ा पकड़ाया जा रहा है।
छोटे में माँ से कोई चीज
मांगता था,रोता था,
माँ बहला देती थी,नहीं..
बेटा घनघन बाबा आ जाएगा,
मैं सहम जाता था और माँ जो
कहती थी वो करता था।
थोड़ा बड़ा हुआ तो,
भाई-बहिनों ने उल्लू बनाया,
बातों में लगा कर मेरे हिस्से
का घी खूब खाया।
पिता के साथ जाने की जिद
करता था तो झांसे दे देते थे,
कहते बेटा रास्ते में चुड़ैल,
मिलती है जो बच्चों को मारती है।
स्कूल में दोस्त शैतानी कर
मेरा नाम लगा देते थे,
मास्टर जी सोटी से
बहुत सुताई करते थे।
कालेज में लड़कियों ने
बहुत मूर्ख बनाया,
भैया-भैया कहकर
खूब नोट्स लिखवाए।
शादी में तो हद हो गई भाईयों,
अपना खोटा सिक्का
बड़ी शान से मुझे मढ़ दिया।
बच्चे भी मूर्ख बनाने में अव्वल हैं
जब भी चाहते हैं,
किसी भी बहाने
पैसे ऐंठ लेते हैं।
ऑफिस में बास भी
उल्लू बनाता है,
चार लोगों का काम
मुझ अकेले से कराता है।
नेताजी ने आठ नबंवर
को ही उल्लू बनाया है,
मेरे पैसों के लिए ही
मुझे लाइन में लगवाया है।
चुनाव में पैर पड़कर
कितनों ने मुझे बरगलाया है,
मेरा वोट मुझे उल्लू बनाने
वालों को ही डलवाया है।
बैंक भी उल्लू बना रहे हैं
तीन हज़ार से कम लिमिट में,
पैसे खा रहे हैं।
मैं भी तुम्हें उल्लू बना रहा हूँ
अपनी घटिया कविता,
तुम्हें पढ़वा रहा हूँ।
#सुशील शर्मा
परिचय : सुशील कुमार शर्मा की संप्रति शासकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय(गाडरवारा,मध्यप्रदेश)में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) की है।जिला नरसिंहपुर के गाडरवारा में बसे हुए श्री शर्मा ने एम.टेक.और एम.ए. की पढ़ाई की है। साहित्य से आपका इतना नाता है कि,५ पुस्तकें प्रकाशित(गीत विप्लव,विज्ञान के आलेख,दरकती संवेदनाएं,सामाजिक सरोकार और कोरे पन्ने होने वाली हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा के तहत देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में करीब ८०० रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इंटरनेशनल रिसर्च जनरल में भी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान के रुप में विपिन जोशी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान ‘द्रोणाचार्य सम्मान-२०१२’, सद्भावना सम्मान २००७,रचना रजत प्रतिभा
वाह गुरु जी,,मज़ा आ गया..