सैनिक को, *माँ* की पाती”
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. ( *लावणी छंद*)
*पुत्र* तुझे भेजा सीमा पर,
भारत माता का दर है।
पूत लाडले ,गाँठ बाँध सुन,
वतन हिफाजत तुझ पर है।
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त्याग हुआ है बहुत देश में,
जितना सागर में जल है।
अमर रहे गणतंत्र हमारा,
आजादी महँगा फल है।
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आतंकी को गोली,मारो,
इसके ही वो काबिल है।
दिल्ली को वे तिरछे देखे,
दिल्ली तो अपना दिल है।
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काशमीर की केशर क्यारी,
स्वर्गिक मूल धरोहर है।
सूर्य पुत्र की रजधानी थी,
वह *डल* पुन्य सरोवर है।
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काशमीर के आतंकी तो,
बन्दूकों के काबिल है।
उनको सीधे स्वर्ग सिधाओ,
स्वर्ग सुखों से गाफिल है।
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चौकस रहना,सीमाओं पर,
नींद चुरा कर जगना है।
खटका हो तो उसके पीछे,
चौकस हो कर भगना है।
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मेरी तुम जो याद करो तो,
मृदा वतन की छू लेना।
घर परिवारी याद सँजोने,
कभी पत्र भी लिख देना।
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पीठ दिखानी नही कभी भी,
सीना ताने रखना है।
जबतक तन में श्वाँस,तिरंगा,
हाथों थामे रखना है।
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लोकतंत्र की माँ संसद है,
संवादी देवालय है।
संविधान प्रभुमूरत सा है,
लोकतंत्र विद्यालय है।
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“भारत माटी सोना उगले”
बना रहे अफसाना है।
विश्वगुरू भारत है जग में,
*सोन चिड़ी* पैमाना है।
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सम्प्रभुता मेरे भारत की,
सैनिक की….मुस्तैदी से।
जनगणमन का गान,तिरंगा,
भारत माँ . बलि वेदी से।
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मैने तुझको भेज दिया है,
भारत माँ ….की सेवा है।
भारत माँ मेरी भी माँ है,
माँ की सेवा.. ..मेवा है।
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बेटा अपना शीश कटाकर,
वतन बड़ा कर जाना है।
पीठ दिखाके बचते,जिन्दा,
नहीं लौट कर आना है।
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सीने पर गोली खा लेना,
मान तिरंगा रखना है।
लिपट तिरंगे में घर आना,
माँ का दूध न लजना है।
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रोउँ नहीं, क्यूँ आँसू टपके,
वीर मात कहलाना है।
अंतिमपथ तक पूत लाड़ले,
तुझको.. तो …पहुँचाना है।
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भारत माँ हित गये,पिता भी,
पति का भी परवाना है।
तुझको खोकर मेरे लाड़ले,
*पन्ना धर्म निभाना है।*
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माँ *पन्ना* ने धर्म धरा हित,
सुत चन्दन कुर्बान किया।
मैने उस बलिदान रीत को,
*पन्ना धर्म* सुनाम दिया ।
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मैं भी अपना धर्म निभाऊँ,
प्यारा वतन बचाना है।
करले याद शहीद मात की,
सुत का धर्म निभाना है।
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कितनी ही अबला सबलाएँ,
*पन्नाधर्म* निभाती है।
उन ललनाओ के संयम पर,
आँखें अश्रु बहाती है।
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जीवन है बस बिन्दु सिंधु सम,
मानव फर्ज निभाना है।
तू भी पल में जल मिलजाना,
कर्जा कोख चुकाना है।
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सत्ता धारी अफसर , नेता,
मुझे नहीं–कुछ कहना है।
देश,देश की जनता को ही,
सब खुद ही तो सहना है।
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खुद समझे सम्मान करे,या,
*उत्पीड़न* परिवारो को।
मरे वतन हित,गई पीढ़ियों,
फौजी पहरे दारों को।
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मेरा तो पैगाम तुम्हे बस,
*प्रीत सुरीत* निभानी है।
देश प्रेम की बुझती लौ में,
फिर से *आग* लगानी है।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः