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बच्चा अपने जन्म के बाद जब बोलना सीखता है तो सबसे पहले जो शब्द वह बोलता है वह होता है ‘माँ’। स्त्री माँ के रूप में बच्चे की गुरु है। बच्चे के मुख से निकला हुआ यह एक शब्द मात्र शब्द नहीं उस माता द्वारा नौ महीने बच्चे को अपनी कोख में पालने व उसके बाद होने वाली प्रसव पीड़ा का।
माता को जो अनुभव होता है वही बालक के जीवन पर प्रभाव डालता है। माता से ही वह संस्कार ग्रहण करता है। माता के उच्चारण व उसकी भाषा से ही वह भाषा-ज्ञान प्राप्त करता है। यही भाषा-ज्ञान उसके संपूर्ण जीवन का आधार होता है।
इसी नींव पर बालक की शिक्षा-दीक्षा तथा संपूर्ण जीवन की योग्यता व ज्ञान का महल खड़ा होता है। माता का कर्तव्य केवल लालन-पालन व स्नेह दान तक ही सीमित नहीं है। बालक को जीवन में विकसित होने, उत्कर्ष की ओर बढ़ने के लिए भी माँ ही शक्ति प्रदान करती है। उसे सही प्रेरणा देती है।
समय-समय पर बाल्यकाल में माता द्वारा बालक को सुनाई गई कथा-कहानियाँ, उपदेश व दिया गया ज्ञान, बच्चे के जीवन पर अमिट छाप तो छोड़ता है। बचपन में दिया गया ज्ञान ही संपूर्ण जीवन उसका मार्गदर्शन करता है।
माँ अपने जीवन के अंतिम क्षण तक अपने बच्चे को छोटा ही समझती है और उसे उसी ममता भरी दृष्टि से देखतीं है जैसे उसे जन्म के समय देखा था.
माँ की ममता और बच्चे के प्रति प्रेम अनमोल,अद्भुत और अद्वितीय हैं,माँ के लिये लिखने और कहने की कोई सीमा नही है।
बस अन्तिम अपनी बार अपनी लेखनी के माध्यम से यहीं कहूँगा की..
माँ है तो ये दुनिया जहान हैं..
माँ है तो ये धरती आसमान हैं..
माँ है तो ये सारे सपने अरमान हैं..
माँ है तो ये सारी ऊँचाइयां उड़ान हैं..
माँ से ही ये रुतबा और शान है..
माँ से ही ये शोहरत और पहचान है..
माँ से ही ये दौलत और ईमान है..
माँ हैं तो ये सारी खुशियाँ वरदान हैं..
माँ से मिले ये सारे संस्कार और ज्ञान हैं..
माँ से मिले ये नायाब ममता और नाम हैं..
माँ से मिले इस जग में प्यार और सम्मान हैं..
माँ हैं तो ये जिंदगी खूबसूरत तमाम हैं..
माँ हैं तो सपनों में विश्वास और जान हैं..
माँ हैं तो खुद पर गर्व और अभिमान हैं..
माँँ हैं तो ये जहाँ रोशन और प्रकाशमान हैं..
माँ से ही सारी तकलीफों का मिलता समाधान हैं..
माँ हैं तो ये ऊंचा महल और मकान हैं..
माँ हैं तो ये मन्दिरों में भीड़ और भगवान हैं..
माँ हैं तो ये सारा विश्व और हिन्दुस्तान हैं..
माँ हैं तो ये सारी कामयाबी और अच्छे परिणाम हैं..
माँ कुदरत का अनमोल इनाम हैं..
माँ इस जगत में सबसे महान हैं..
माँ से ही तो गीता और कुरान हैं..
इस जगत में माँ पूज्यनीय और प्रधान हैं..
#शिवांकित तिवारी ‘शिवा’
परिचय-शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.)है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश)में बसेरा है। मध्यप्रदेश के श्री तिवारी ने कक्षा १२वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है,और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में कार्यरत होकर सामाजिक गतिविधि के निमित्त कुछ मित्रों के साथ संस्था शुरू की है,जो गरीब बच्चों की पढ़ाई,प्रबंधन,असहायों को रोजगार के अवसर,गरीब बहनों के विवाह में सहयोग, बुजुर्गों को आश्रय स्थान एवं रखरखाव की जिम्मेदारी आदि कार्य में सक्रिय हैं। आपकी लेखन विधा मूलतः काव्य तथा लेख है,जबकि ग़ज़ल लेखन पर प्रयासरत हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का है,और यही इनका सर्वस्व है। प्रकाशन के अंतर्गत किताब का कार्य जारी है। शौकिया लेखक होकर हिन्दी से प्यार निभाने वाले शिवा की रचनाओं को कई क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी स्थान मिला है। इनको प्राप्त सम्मान में-‘हिन्दी का भक्त’ सर्वोच्च सम्मान एवं ‘हिन्दुस्तान महान है’ प्रथम सम्मान प्रमुख है। यह ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-भारत भूमि में पैदा होकर माँ हिन्दी का आश्रय पाना ही है। शिवांकित तिवारी की लेखनी का उद्देश्य-बस हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में पहला स्थान दिलाना एवं माँ हिन्दी को ही आराध्यता के साथ व्यक्त कराना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-माँ हिन्दी,माँ शारदे,और बड़े भाई पं. अभिलाष तिवारी है। इनकी विशेषज्ञता-प्रेरणास्पद वक्ता,युवा कवि,सूत्रधार और हास्य अभिनय में है। बात की जाए रुचि की तो,कविता,लेख,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, प्रेरणादायी व्याख्यान देना,कवि सम्मेलन में शामिल करना,और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना है।
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