दो सहस अरु चहोत्तर,नवसंवत् का आन।
विक्रम तेरे राज का,जग करता है गान।।
अवंती विक्रम की पुरी,राजा थे बलवान।
दूध पानी-सा न्याय करे,कहते कवि मसान।।
झरना भी अब सूखते,नदियाँ भई उदास।
फसलें खेत बहार हैं,मास चैत बैसाख।।
नए साल के आवते,फूले फूल पलाश।
पेड़ों की कोपल चली,नव पल्लव की आस।।
आमों की बगियाँ फली,कोयल कहे पुकार।
भौंरा फूलन रस पिये,मस्ती भरी बयार।।
पलाश पुलकित हो रहे,लाल-लाल कचनार।
सखियाँ शंख बजा रही,नया साल इजहार।।
सरसों,गेंहू,रइं,चना,धनिया खेत बहार।
गौरी बालम साथ में,संवत् का सत्कार।।
मिसरी काली मिर्च की,गोली रोज बनाय।
नीम कोपल साथ में,नित उठ भोग लगाय।।
#डाॅ. दशरथ मसानिया