बूंद-बूंद जल का,
महत्व जान लो..
जल जीवन है,
पहचान लो..।
होली में होगा,
होलिका दहन..
पाप की जलेगी चिता,
भड़केगी आग..
खुशियों के नाम पर,
बहाया जाएगा जल..।
धरा होगी एक दिन,
सूखी अतृप्त..
करेंगें यही त्राहिमाम,
कर रहे जो पाप..
स्वंय अपने ही हाथ..।
कुछ पल ठहर कर,
हे मानव!
कुछ तो सोच..
कर कुछ विचार।
त्यौहार की देकर दुहाई,
व्यर्थ न कर..
जल तू बर्बाद।
रिक्त होगे,
जब जल प्रपात..
सूख जाएँगे,
झरने-नदी-तालाब..
ख़त्म होगा जब धरा से,
तरसोगे बूंद-बूंद जल को।
राम-कृष्ण के वंशज,
जब जागो तभी सबेरा है..
वक्त है सम्भलना होगा।
संदेश दें सम्पूर्ण धरा को,
हम बन सकें उदाहरण..
करें स्वयं से आरम्भ।
इस बार खेलें होली,
नेह प्रेम के रंगों से..
अबीर और गुलाल से..।।
#उमेश कुमार गुप्त
परिचय : उमेश कुमार गुप्त का १९८९ में जन्म हुआ है और निवास भाटपार रानी देवरिया(उत्तर प्रदेश) है। जिला देवरिया में रहने वाले उमेश गुप्त के प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह(जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला) है तो प्रकाशाधीन साहित्य भी है। भारत के श्रेष्ठ युवा कवि-कवियित्रियाॅ में आपकी रचना है तो साझा कहानी संग्रह(मधुबन) भी आपने लिखा है।अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जारी है। आपकी लेखनी की बदौलत कई शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। काव्य अमृत सम्मान 2016 आपको मिला है ।