मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।
आए जीवन में गर मुश्किल,
पर मैं मुश्किल नहीं टिकने दूँगा ।
मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।
इस तृण हरित रुधिर की भूमि पर,
कईयों ने अपना रक्त बहाया है।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई,
सबने ही रुधिर गंग में नहाया है।
आतताई देशद्रोही के हाथों,
मैं यह देश नहीं बिकने दूँगा।
मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।
हे माँ शस्य श्यामला,
मैं नित नूतन चरण शीश झुकाता हूँ।
माँ तेरे मातृत्व आँचल में,
नित अपना शीश छुपाता हूँ।
गरल भरे इन शैतानों को,
मैं मिटा के राख कर दूँगा।
मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।
माँ तेरे आँचल की छाया में,
रोज बसेरा मेरा होता।
मधुरता,शीतलता और सरसता के,
दीप तुम्हारा मैं जोता ।
सुधा रस की धार को,
मैं मिटने नहीं दूँगा।
मैं देश नहीं रुकने दूँगा ,
मै देश नहीं झुकने दूँगा।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,
धरा व अम्बर तल में ।
भीनी-भीनी खुशबू से,
भर देती हो तन-मन में।
अत्याचारी,दुराचारियों के हाथों,
मैं और कृत्य नहीं होने दूँगा।
मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।
माँ भारती,वात्सल्य और ममता से,
सबको पोषण कराती है।
यौवन,बचपन,वृद्ध अवस्था में,
अविरल सुख पान कराती है।
गर आए आँच आँचल पर,
तो मैं निज प्राण न्यौछावर कर दूँगा।
पर,
मैं देश नहीं रुकने दूँगा,
मैं देश नहीं झुकने दूँगा।।
#त्रिलोक चन्द खाण्डल
परिचय: त्रिलोक चन्द खाण्डल राजस्थान के किशनगढ़(जिला-अजमेर)में रहते हैं।
सुन्दर
Bahut hi shaandaar rachhna.
आत्मीय आभार आप सभी गुणीजनों का
Very nice poetry. Congratulations sir ji
बहुत आभार आदरणीय