आजादी का स्वप्न संजोया..अपनी खुशिंयाँ भूलकर,
काट बेड़ियां भारत माँ की..चला निरंतर शूल पर।
राष्ट्र दुलारा,आँख का तारा,शेर..ए बब्बर सरजमीं का,
भगतसिंह बलिदान हुआ था..हंस फाँसी पर झूलकर।
उम्र न जिसको रोक सकी थी..बारुदों के खेलों से,
दाँत शेर के जो गिनता था..मौत स्वयं अनुकूल कर।
राष्ट्र प्रेम का प्रखर चितेरा..आजादी का नायक वह,
मातृभूमि पर जान लुटाई..विधि का पथ प्रतिकूल कर।
ऋणी राष्ट्र का नमन तुम्हें है..कोटि-कोटि अभिनंदन है,
शब्द सुमन अर्पित चरणों में..कलम रक्तिका तूल कर।
#अनुपम कुमार सिंह ‘अनुपम आलोक’
परिचय : साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि रखने वाले अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ इस धरती पर १९६१ में आए हैं। जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मो0 चौधराना निवासी श्री सिंह ने रेफ्रीजेशन टेक्नालाजी में डिप्लोमा की शिक्षा ली है।
मातृभाषा हिन्दी पोर्टल साहित्य जगत को नव आयाम देगा ऐसा मेरा विश्वास है |
बहुत सुंदर सृजन हैं आदरणींय… सभी विद्वत रचनाकारों को प्रणाम व
आपका सादर आभार मुझ आकिंचन को पोर्टेल से जोड़ने हेतु