हर पल सोना,
उलझन दुख..
आफत का रोना,
छोड़ो इनसे लाभ न होना।
भरते घाव कुरेद रहा था,
पिन अन्दर तक छेद रहा था..
हल का भी ऐसा क्या होना,
हल से रखे गुरेज रहा था।
वर्तमान के,
साथ चला हूं..
नहीं भूत को सिर पर ढोना,
हर संकट का समय काल है..
बुना उसी का मकड़ जाल है,
डटकर साहस..
फंदे तोडे़,
हर पल सजता रहा भाल है।
शुरु किया हूँ,
पल की खेती..
उगा रहा हूं हर पल सोना।
#विनय पान्डेय
परिचय : विनय पान्डेय मध्यप्रदेश के कटनी में रहते हैं। आपका व्यवसाय पान्डेय ग्रुप आफ कम्पनीज प्राईवेट लि. है। एमबीए की शिक्षा पा चुके श्री पाण्डेय की विशेष रूचि मुक्तक,छंद, ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। उपलब्धियों की बात करें तो,कवि सम्मेलन और मुशायरा समूह का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। कई पत्रिका एवं समाचार-पत्र में कविताएँ प्रकाशित होती हैं।