स्त्री
लुटती रही
नुचती रही
चीख़ती रही
चिल्लाती रही
पर
कोई न था
सुनने वाला
असहाय खड़ी
नीढाल पड़ी
रास्ते पर
साथ थी उसके
तो बस
अविरल प्रवाहित होती
उसकी अश्रु धारा
कितना ज़ालिम है
देखो
ये ज़माना
जिस माँ से
जन्म लिया
वो भी एक
स्त्री है
जिसने कलाई में राखी बाँधी
वो भी एक
स्त्री है
पत्नी भी
एक स्त्री है
फिर भी
न जाने क्यों
न कर पा रहा
सम्मान स्त्री का
सरे राह
लूटने को
तैयार खड़ा है
आज हर चौराहे पर
कहीं भी हिफ़ाज़त के लिए हाथ
नहीं बढ़ते
बढ़ते हैं तो बस ……
न शर्म बची
न हया ही कहीं
प्रेम की धारा
बहाने वाली
हर स्त्री
आज
कहीं भी
महफ़ूज़ नहीं
#अदिति रूसिया
वारासिवनी