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रोशनी अंधेरा ओढ़े खड़ी है।
उम्मीदे जमीन पर पड़ी है।।
कदम पीछे की और पड़ रहे है।
भयानक साये आगे बढ़ रहे है।।
काल के पंजो में परिंदा फसा है।
उड़ने की आस पर पंख बंधे है।।
काल के हाथों ये दम तोड़ जाएगा।
मन से हारा हुआ जान कैसे बचाएगा।।
तन से हारा तो फिर भी उठ जाएगा।
मन से हारा खुद से ही मात खायेगा।।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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