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बात कुछ ना थी बवंडर हो गए,
महल आलीशान खंडहर हो गए,
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वक्त के हाथों बचा ना कोई भी,
दफन कितने ही सिकंदर हो गए,
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थोड़ी शोहरत थोड़ी इज्ज़त क्या मिली,
वो जो कतरा थे समंदर हो गए,
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हो गए सीने से मेरे आर पार,
लफ्ज़ तेरे आज खंजर हो गए,
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भाई ही भाई का दुश्मन बन गया,
कैसे खौफनाक मंजर हो गए,
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खुदपसंद थे जो तवंगर वो बने,
खुदापसंद सारे कलंदर हो गए
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भरत मल्होत्रा।
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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