आज स्वतंत्रता के बहत्तर साल हो गये,
फिर क्यों कड़ाहती है जिन्दगी,
कहीं सिसकते मासूम तो,
कहीं अबलाओं की दुसवार है जिन्दगी,
कहीं लाचार तो,कही रफ्तार है जिन्दगी,
कहीं भूख तो, कही लूट है जिन्दगी,
कहीं द्वेष तो, कही फरेब है जिन्दगी,
कहीं योग्यताएँ भरमार है, पर वेरोजगार है जिन्दगी,
कहीं कानून पर्याप्त है फिर क्यों न्याय को लाचार है जिन्दगी,
कहीं एकता है तो, कहीं अनेकता से भेद-भाव है जिन्दगी,
कहीं मिलन है तो,कहीं जुदाई से लाचार है जिन्दगी,
कहीं भीड़ है तो, कहीं सुनसान है जिन्दगी,
कहीं कलह है तो,कहीं शांत है जिन्दगी
कहीं रोग है तो कहीं आरोग्य है जिन्दगी,
कहीं आतंक है तो,कही व्यवहार है जिन्दगी,
कहीं आराम है तो, कहीं काम है जिन्दगी,
कहीं हवस है तो कहीं प्यार है जिन्दगी,
कहीं वैराग्य है तो, कहीं योग है जिन्दगी,
कहीं रोशनी है तो, कहीं अन्धेरा है जिन्दगी,
योजनायें तो, भरमार है फिर भी सड़को पर सोती हैं जिन्दगी।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति