शिव ही शिव हैं जिसके अंदर
जानें जो शिव-माया का अंतर।
प्रेम शिव से करता है
शिव पर ही वो मरता है।
शिव हैं उसकी श्वांसों में
शिव उसकी प्रश्वासों में।
शिव मिलन को जिसने
जग की मर्यादाएं तोड़ी हैं।
शिव को भी है प्यारा सबसे
जिसे कहते हम अघोरी हैं।
मृत मांस का भोजन करता
सारी रीत उसने छोड़ी है।
प्राण बिनु तन है बस अवशेष
कहता हमें अघोरी है।
मैं क्या हूं समझाये वो ही
मेरी काया भी किराए की।
एकदिन मिट्टी में मिल जाएगा
आत्मा शिव में ही खो जाएगी।
शिव हैं सत्य, शिव ही सुंदर
शिव बिन जग माया घनघोर।
हम बस ढोंगी अभिनेता हैं
शिव को पुजे एक अघोर।।
परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैlशिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl