पश्चिमी बंगाल, शेरनी के पंजे में लोकतंत्र

0 0
Read Time9 Minute, 3 Second

rakesh saini

जुझारु राजनीति, संघर्षशील व सादे जीवन के चलते पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी को ‘बंगाल की शेरनी’ के नाम से भी जाना जाता है। बौद्धिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध बंगाल में लगभग 34 साल तक चले वामपंथी राज का जिस तरह ममता ने तख्तापलट किया और तानाशाही से लोहा लिया उससे उन्होंने अपनी इस संज्ञा की गरिमा को नए आयाम भी दिए परंतु अब कहीं न कहीं लगने लगा है कि इस शेरनी के पंजे लोकतंत्र का गला घोंटते जा रहे हैं। बंगाल के पंचायत चुनावों में जिस तरह से हिंसा हुई और लोकतंत्र की मर्यादाओं को तार-तार किया गया उससे बंगाली समाज की छवि दागदार हुई। विश्वगुरु रबिंद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चैटर्जी जैसे विद्वानों, स्वामी विवेकानंद जी जैसे महापुरुषों व सुभाषचंद्र बोस, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों की भूमि आजकल हिंसा, रक्तपात, सांप्रदायिक उन्माद व लोकतंत्र की हत्या के लिए चर्चा में है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के 621 जिला परिषद् और 31803 ग्राम पंचायत की 48650 सीटों पर हुए पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने अपार सफलता मिली है। तीन स्तरों पर हुए चुनावों में इन सीटों में 34 प्रतिशत सीटों पर तो निर्विरोध चुनाव हुए जो स्वभाविक तौर पर सत्ताधारियों के पक्ष में गए। चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने भारी भरकम सफलता हासिल की जबकि भारतीय जनता पार्टी दूसरे, वामपंथी तीसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस गधे के सींगों की तरह गायब सी हो गई। अगर चुनाव निर्विवादित होते तो आज ममता को चारों ओर से बधाई मिल रही होती परंतु उनकी तो आलोचना शुरु हो गई है। पूरी चुनावी प्रक्रिया में हिंसा, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, मतपेटियों की लूटपाट, मतपत्रों को तालाब में फेंकने, आगजनी, मतदाताओं को पीटने, डराने धमकाने की इतनी घटनाएं हुईं कि पिछली विगत 80-90 के दशक में बिहार में होने वाली चुनावी गड़बडिय़ां स्मृति पटल पर उभर आईं। पूरे प्रदेश के 56 मतदान केंद्रों में हिंसा की शिकायतें दर्ज हुईं और 131 हिंसा, आगजनी, तोडफ़ोड़ के केस सामने आए। इस हिंसा में लगभग 13 लोगों की कीमती जानें गईं और कई दर्जन घायल हुए। देश में एक ओर जहां चुनावी प्रक्रिया काफी सीमा तक स्वच्छ हो चुकी है वहीं बंगाल जैसे जागरुक जनमत वाले राज्य में हिंसा की खबरों ने इस चिंता में डाल दिया कि कहीं बंगाल की शेरनी के हाथों लोकतंत्र दम न तोड़ दे।

Singur: West Bengal chief minister Mamata Banerjee addresses farmers during a programme at Singur, West Bengal on Wednesday. Banerjee handed over land parchas (land deeds) and compensation cheques to farmers during the programme. PTI Photo by Swapan Mahapatra   (PTI9_14_2016_000224A)

वैसे बंगाल में हिंसा नई घटना नहीं, विभाजन पूर्व मुस्लिम लीग की प्रत्यक्ष कार्रवाई में हुई हजारों हिंदुओं की हत्याएं को छोड़ भी दें तो भी साल 1977 से लेकर 2010 तक 28000 लोग राजनीतिक हिंसा का शिकार हुए बताए गए हैं। ममता से पूर्ववर्ती वाम सरकारों को राज्य में हिंसा का सूत्रपात करने का बहुत बड़ा श्रेय दिया जाता है। ठीक है कि राज्य में पंचायत चुनावों व भू-सुधारों की वामदलों ने केवल शुरुआत ही नहीं की बल्कि इन्हे इतने अच्छे तरीके से चलाया कि स्थानीय स्तर पर सफल लोकतंत्र के रूप में दुनिया भर में इसकी उदाहरण दी जाने लगी। पर जैसे-जैसे सीपीआई में विभाजन सहित अनेक कारणों से वामपंथियों के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ता गया तो सत्ताधारी अपना दबदबा बनाए रखने को हिंसा का सहारा लेने लगे। परेशानी तब पैदा हुई जब विपक्ष के रूप में कांग्रेस भी लुप्त होने लगी और केंद्र में सत्ता के लिए वामदलों पर निर्भर होने लगी। इससे यहां के लोग पूरी तरह कामरेडों की दया पर निर्भर हो गए। इस बीच कांग्रेस से अलग हो कर जुझारु नेता के रूप में ममता बैनर्जी ने बंगाली मिट्टी, मानुष के नाम पर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। एक समय वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ का हिस्सा भी रहीं और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री का पद संभाला लेकिन देश में छिड़ी धर्मनिरपेक्षता की बहस के बीच वे राजग से भी अलग हो गईं। उन्होंने बंगाल की तंगहाली, वाम सरकार की उद्योग विरोधी नीतियों, हिंसा की राजनीति के खिलाफ मोर्चा खोला और 34 साल पुराने लाल दुर्ग को ताश के पत्तों की भांति छिन्न-भिन्न कर दिया। लेकिन सत्ता में आने के बाद ममता भी वामपंथियों की उन्हीं नीतियों पर चलने लगीं जिनके खिलाफ उन्हें जनादेश मिला।

प्रदेश में राजनीतिक हिंसा व दमन की नीति जारी रही है, अंतर केवल इतना आया कि गुंडे पाला बदल कर तृणमूल कांग्रेस में आ गए। यह राजनीतिक हिंसा की ही बानगी है कि साल 2015 में इस तरह के 139 और अगले साल 91 मामले सामने आए। ममता सरकार किसी उद्योग को राज्य में आकर्षित नहीं कर पाई तो राजनीतिक गुंडागर्दी बहुत बड़ा उद्योग बन कर सामने आया। सरकारी संरक्षण में यह दबंग सार्वजनिक व निजी संपत्तियों पर कब्जे सहित अनेक अपराधिक वारदातें करने लगे। बदले में सत्ताधारी दल के लिए उसी तरह वोट जुटाने लगे जिस तरीके से इन पंचायत चुनावों में मतपत्र लूटे गए हैं। दंगाईयों के सामने पुलिस प्रशासन की बेबसी बताती है कि पंचायत चुनावों में हुई हिंसा इन्हीं समर्थकों ने ही की। इस बीच राज्य में भारतीय जनता पार्टी राज्य में एक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आरही है, जिसके साक्षी पंचायत चुनाव खुद भी हैं। अपनी सत्ता बचाने के लिए तृणमूल, पुरानी प्रतिष्ठा पाने के लिए वामपंथी दिनबदिन हिंसक हो रहे हैं।

चिंता की बात यह है कि देश में हुआ लोकतंत्र का यह चीरहरण बौद्धिक विमर्श से गायब है। हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर पूरी ताकत से दांत कटकटाने वाले बुद्धिजीवी बंगाल की हिंसा पर दंतरोगी की भांति मौन हैं। ममता स्वयं को धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करती है और हमारे बौद्धिक योद्धा मान कर चलते हैं कि जैसे लालबत्ती वाली गाड़ी को यातायात कानून तोडऩे के तमाम अधिकार हैं उसी तरह धर्मनिरपेक्ष नेता के अपराधों पर मौन धारण करना उनका परम दायित्व है। ममता दीदी की मनमानियों को नहीं रोका गया तो पहले से ही कटुता झेल रहा देश का लोकतंत्र कोई नए खतरे में पड़ सकता है जिसके लिए आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। हमें राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की चेतावनी नहीं भूलनी चाहिए कि –

समर शेेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
                          #राकेश सैन,जालंधर

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

आज कर फिर बहाना तू....

Thu May 24 , 2018
आज कर फिर बहाना तू मेरा दिल बहलाने का मुझे तेरी बुरी आदत देख सब भूल जाने का। आज कर फिर बहाना तू मेरा दिल बहलाने का। तेरे हर लफ्ज़ को मैंने सर-माथे लगाया है उठी उँगली किसी की गर कदमों पर झुकाया है मुझे तेरी बुरी आदत देख सब […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।