कद्र है …

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anupa harbola

“क्या जी!  मैं सारा दिन तुम्हारा इंतज़ार करती हूं और तुम आकर सीधे अपने मम्मी- पापा के कमरे में चले जाते हो, मेरे बारे में कुछ भी नहीं सोचते” गुस्से से भरी हुई ऋतु बोली।

 

“दिन भर का थका-हारा आया हूँ, घर आने पर लोगों की पत्नियां चाय- पानी पिला कर, प्यार भरी मीठी- मीठी बातें करती हैं और तुम गुस्सा कर रही हो”।

 

“लोगो के पति भी तो ऑफिस से आने के बाद सीधे पत्नी के पास आते हैं, कहीं इधर उधर नहीं जाते ना, तुम्हे तो मेरी कोई कद्र ही नहीं”

 

” कद्र है जानेमन! मुझे अपनी दादी की सूनी आंखें अभी भी याद हैं, इसीलिये तो बच्चों के दादा – दादी के कमरे में जाता हूं।”

” तो क्या ?”

“आज मैं वहां जा रहा हूं तो कल बच्चे भी, तुम्हारे पास आएंगे…।”

अनूपा हर्बोला

विद्यानगर(कर्नाटक)

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