रिश्तो को समझते समझते तह उम्र निकल गयी
जब आयी रिश्तो की समझ
तब ज़िन्दगी की डोर हाथ से फिसल गयी
क्यूँ बेगानी सी ज़िन्दगी जीते रहे
अपनेपन की आस में कुछ अपने ताह उम्र तरसते रहे
जब किनारा आया नज़र
तो पैरो के नीचे से जमीं निकल गयी
ये ग़रूर था या जींद या नासमझी
रिश्तो को निभाने की जगह
ज़िन्दगी उन्हें गवाते गवाते निकल गयी
अब कुछ ना सिमट पायेगा
क्यूकी अब तो बन्द मुट्ठी भी
मिट्टी में मिल गयी
अपने तलाशते रहे आपको
पहले आप अपने गरुर और बाद में
मौत के आगोश में खोये रहे
रिश्तो को समझते समझते तह उम्र निकल गयी
जब आयी रिश्तो की समझ
तब ज़िन्दगी की डोर हाथ से फिसल गयी
#शालिनी जैन