तन और मन को शुद्ध करता है योग

0 0
Read Time28 Minute, 27 Second

gopal narsan

योग दिवस पर विशेष………..

योग एक ऐसी विधा है,जिसे अपनाकर बिना कोई खर्च किये व्यक्ति अपने तन और मन को शुद्ध कर सकता है।यदि हम राजयोग के माध्यम से अपनी आत्मा को स्वच्छ बनाये और योगाभ्यास के माध्यम से शारिरिक व्यायाम व प्राणायाम करे तो योग की सम्पूर्ण कला व्यक्ति को तन व मन से निरोगी बना देती है। योग का सही समय सूर्योदय व  सूर्यास्त ही है।
योग खाली पेट करें। योग करने से 2 घंटे पहले कुछ ना खायें।_
आरामदायक सूती कपड़े पहनें।_
तन की तरह मन भी स्वच्छ होना चाहिए — योग करने से पहले सब बुरे ख़याल दिमाग़ से निकाल दें।_
किसी शांत वातावरण और सॉफ जगह में योग अभ्यास करें।_
अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।_
योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें धीरज रखें।_
योग के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।_
निरंतर योग अभ्यास जारी रखें।_
योग करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें। 1 घंटे तक ना नहायें।_
प्राणायाम हमेशा आसान अभ्यास के बाद करें।_
अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें।_
अगर तकलीफ़ बढ़ने लगे या कोई नई तकलीफ़ हो जाए तो तुरंत योग अभ्यास रोक दें।_
_शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है। यह इतना शक्तिशाली और प्रभावी इसलिए है क्योंकि यह सद्भाव और एकीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है।_
_योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, ख़ास तौर से वहाँ जहाँ आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है। एचआईवी (HIV) पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है।_
_अधिकांश लोगों के लिए, हालांकि, योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाए रखने का मुख्य साधन हैं। योग बुरी आदतों के प्रभावों को उलट देता है — जैसे कि सारे दिन कुर्सी पर बैठे रहना, मोबाइल फोन को ज़्यादा इस्तेमाल करना, व्यायाम ना करना, ग़लत ख़ान-पान रखना इत्यादि।_
_इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं। इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर मेषूस करने पड़ेंगे। हर व्यक्ति को योग अल्ग रूप से लाभ पहुँचाता है। तो योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें।_योग भारतीय संस्कृति और जीवन शैली का एक अभिन्न अंग  है इसके महत्व और वैज्ञानिकता को पूरे विश्व द्वारा स्वीकार किया जाना देश के लिये एक गर्व की बात है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और जीवन शैली के अभिन्न अंग योग की महत्व तथा वैज्ञानिकता को पूरा विश्व स्वीकार कर चुका है।  देश की इस अनमोल धरोहर की उद्गम स्थली उत्तराखंड की ‘विश्व योग राजधानी’ के रूप में पहचान स्थापित्त हो चुकी है। ‘योग’ को सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ कला बताते हुए श्री बत्रा ने कहा कि यह धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक विशुद्ध विज्ञान है। योग सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है । जो हमारे शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।_
_योगाभ्यास से संयम, धर्य और सहिष्णुता जैसे मानवीय गुण पोषित होते हैं. यह मानसिक भटकाव तथा तनाव से मुक्ति का सबसे कारगर उपाय है। योग में ‘संभावनाओं को संभव’ में परिवर्तित करने की जादुई शक्ति निहित है। विज्ञान व तकनीकि के इस युग में इंसान कई तरह के मानसिक दबाव के बीच जीने को मजबूर होकर तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहा है । ऐसे में योग ही एक ऐसा निर्विवादित और शुद्ध उपाय है जो सहज व स्वस्थ जीवन जीने की शक्ति दे सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन जीने की इस बेहतरीन शैली को अपनाने के लिए कुछ भी खर्च नहीं करना है।अपने चौबीस घंटों में से केवल कुछ मिनट योग को समर्पित करने हैं।_
‘ ऋषि मुनियों की तपोभूमि तथा योग की उद्गम स्थली उत्तराखंड से पूरे विश्व को तनाव मुक्त, स्वस्थ व आनंदित जीवन जीने के लिए योग को अपनाने का पैगाम दें.’।
योग देश ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर हो चुका है। कई ऐसी असाध्य बीमारियां हैं जिनका इलाज योग द्वारा संभव है।_
_लेकिन योग क्रिया का पूरा फायदा मिले इसके लिए जरूरी है कि योग सही तरीके से किया जाए।_
_सुबह-शाम कभी भी आसन कर सकते हैं लेकिन भरपेट खाना खाने के 3-4 घंटे बाद, हल्के स्नैक्स के घंटे भर बाद, चाय, छाछ या तरल चीजें लेने के आधे घंटे बाद और पानी पीने के 10-15 मिनट बाद आसन करना बेहतर रहता है।_
_3 साल से बड़ा कोई भी शख्स योग कर सकता है। अगर आप बच्चे को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि वह खेल-खेल में ही कई तरह के आसन करता है। 12 साल तक के बच्चों को हल्के योगासन और प्राणायाम करना चाहिए। बेहतर होगा वह मुश्किल आसन और क्रियाएं न करें। प्रेग्नेंसी में मुश्किल आसन, कपालभांति न करें। महिलाएं पीरियड्स के दौरान, नॉर्मल डिलिवरी के 3 महीने बाद तक और ऑपरेशन के 6 महीने बाद तक योग न करें। इसके अलावा कमर दर्द हो तो आगे न झुकें, पीछे झुक सकते हैं।_
_अगर हर्निया हो तो पीछे न झुकें। दिल से जुड़ी बीमारी वालों को योगासन शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।_
खुले में ताजा हवा में योग करना बेहतर है। ऐसा मुमकिन नहीं हो तो कहीं भी योग कर सकते हैं। जरूरी है कि इस दौरान माहौल शांत हो। मन को शांत करने वाला म्यूजिक हल्की आवाज में चला सकते हैं।_
जमीन पर योग मैट, दरी या कालीन बिछाकर योग करें। थोड़े ढीले कॉटन के कपड़े पहनना बेहतर रहता है। टी-शर्ट व ट्रैक पैंट आदि में भी कर सकते हैं।_
योगासन आंखें बंद करके करें। इससे योग और भी प्रभावशाली हो जाता है। ध्यान शरीर के उन हिस्सों पर लगाएं, जहां आसन का असर हो रहा है, जहां दबाव पड़ रहा है। भाव से करेंगे तो प्रभाव जल्दी और ज्यादा होगा।_ योग में सांस लेने और छोड़ने की बहुत अहमियत है। जब भी शरीर फैलाएं, पीछे की तरफ जाएं, सांस भरते हुए करें और जब भी शरीर सिकुड़े या आगे की ओर झुकें, सांस छोड़ते हुए झुकें। सांस नाक से लें, मुंह से नहीं।_
योग करते हुए शरीर को शिथिल रखें और झटके से बचाएं। झटके से आसन न करें। उतना ही करें, जितना आसानी से कर पाएं। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं।_
योग को हमेशा ध्यान और मौन से करना चाहिए।_
थकावट, बीमारी और जल्दबाजी में योग न करें।_
योग के 30 मिनट बाद स्नान करना चाहिए और 30 मिनट बाद ही कुछ खाना चाहिए, उससे पहले नहीं।_ योग का नतीजा आने में वक्त लगता है। ऐसे में नतीजे को लेकर जल्दबाजी न करें।
भारतीय संस्कृति जोड़ने पर विश्वास करती है,तोड़ने पर नहीं ।  योग का मतलब ही जोड़ना है। योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।  आज के भौतिक युग में योग का महत्व और बढ़ गया है।  योग सकरात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।  योग करने वाले व्यक्ति सदैव निरोगी रहते हैं . योग ऐसी विद्या है, जिसके नियमित अभ्यास से मनुष्य का तन और मन स्वस्थ्य रहता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मानने का संकल्प पारित किया था. आगामी 21 जून को पूरे विश्व में तीसरा योग दिवस मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति पहले अपने सभी दैनिक कार्य अपने श्रम और शक्ति के साथ करते थे। उन्होंने कहा है कि योग तत्‍वत: बहुत सूक्ष्‍म विज्ञान पर आधारित एक आध्‍यात्मि विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्‍य स्‍थापित करने पर ध्‍यान देता है। यह स्‍वस्‍थ जीवन – यापन की कला एवं विज्ञान है। योग शब्‍द संस्‍कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना या शामिल होना है। योग से जुड़े ग्रंथों के अनुसार योग करने से व्‍यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है जो मन एवं शरीर, मानव एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्‍य का द्योतक है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की हर चीज उसी परिमाण नभ की अभिव्‍यक्ति मात्र है। जो भी अस्तित्‍व की इस एकता को महसूस कर लेता है उसे योग में स्थित कहा जाता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जाता है जिसने मुक्‍त अवस्‍था प्राप्‍त कर ली है जिसे मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, योग का लक्ष्‍य आत्‍म-अनुभूति, सभी प्रकार के कष्‍टों से निजात पाना है जिससे मोक्ष की अवस्‍था या कैवल्‍य की अवस्‍था प्राप्‍त होती है। जीवन के हर क्षेत्र में आजादी के साथ जीवन – यापन करना, स्‍वास्‍थ्‍य एवं सामंजस्‍य योग करने के प्रमुख उद्देश्‍य होंगे। योग का अभिप्राय एक आंतरिक विज्ञान से भी है जिसमें कई तरह की विधियां शामिल होती हैं जिनके माध्‍यम से मानव इस एकता को साकार कर सकता है और अपनी नियति को अपने वश में कर सकता है। चूंकि योग को बड़े पैमाने पर सिंधु – सरस्‍वती घाटी सभ्‍यता, जिसका इतिहास 2700 ईसा पूर्व से है, के अमर सांस्‍कृतिक परिणाम के रूप में बड़े पैमाने पर माना जाता है, इसलिए इसने साबित किया है कि यह मानवता के भौतिक एवं आध्‍यात्मिक दोनों तरह के उत्‍थान को संभव बनाता है। बुनियादी मानवीय मूल्‍य योग साधना की पहचान हैं। इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सभी को योग कर संस्कृति की इस विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए
योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में भगवान कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया।
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है, जीवन जीने की एक कला है। आज के परिवेश में हमारे जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बना सकते हैं। आज के प्रदूषित वातावरण में योग एक ऐसी औषधि है जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, बल्कि योग के अनेक आसन शवसन हाई ब्लड प्रेशर को सामान्य करता है, जीवन के लिए संजीवनी है कपालभाति प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम मन को शांत करता है, वक्रासन हमें अनेक बीमारियों से बचाता है।
लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्‍यता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत, बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्‍यों, शैवों, वैष्‍णवों की आस्तिक परंपराओं एवं तांत्रिक परंपराओं में योग की मौजूदगी है। इसके अलावा, एक आदि या शुद्ध योग था जो दक्षिण एशिया की रहस्‍यवादी परंपराओं में अभिव्‍यक्‍त हुआ है। यह समय ऐसा था जब योग गुरू के सीधे मार्गदर्शन में किया जाता था तथा इसके आध्‍यात्मिक मूल्‍य को विशेष महत्‍व दिया जाता था। यह उपासना का अंग था तथा योग साधना उनके संस्‍कारों में रचा-बसा था। वैदिक काल के दौरान सूर्य को सबसे अधिक महत्‍व दिया गया। हो सकता है कि इस प्रभाव की वजह से आगे चलकर ‘सूर्य नमस्‍कार’ की प्रथा का आविष्‍कार किया गया हो। प्राणायाम दैनिक संस्‍कार का हिस्‍सा था तथा यह समर्पण के लिए किया जाता था। हालांकि पूर्व वैदिक काल में योग किया जाता था, महान संत महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्‍यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबंधित ज्ञान को व्‍यवस्थित एवं कूटबद्ध किया। पतंजलि के बाद, अनेक ऋषियों एवं योगाचार्यों ने अच्‍छी तरह प्रलेखित अपनी प्रथाओं एवं साहित्‍य के माध्‍यम से योग के परिरक्षण एवं विकास में काफी योगदान दिया।  कंप्यूटर की दुनिया में दिनभर उसके सामने बैठ-बैठे काम करने से अनेक लोगों को कमर दर्द एवं गर्दन दर्द की शिकायत एक आम बात हो गई है। ऐसे में शलभासन तथा ताड़ासन हमें दर्द निवारक दवा से मुक्ति दिलाता है।पवनमुक्तासन अपने नाम के अनुरूप पेट से गैस की समस्या को दूर करता है। गठिया की समस्या को मेरूदंडासन दूर करता है। योग में ऐसे अनेक आसन हैं जिनको जीवन में अपनाने से कई बीमारियां समाप्त हो जाती हैं और खतरनाक बीमारियों का असर भी कम हो जाता है। 24 घंटे में से महज कुछ मिनट का ही प्रयोग यदि योग में उपयोग करते हैं तो अपनी सेहत को हम चुस्त-दुरुस्त रख सकते हैं। फिट रहने के साथ ही योग हमें पॉजिटिव एनर्जी भी देता है। योग से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्‍पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्‍था के जन्‍म लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है।
कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्‍तऋषि को प्रदान किया था। सत्‍पऋषियों ने योग के इस ताकतवर विज्ञान को एशिया, मध्‍य पूर्व, उत्‍तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्‍व के भिन्‍न – भिन्‍न भागों में पहुंचाया। रोचक बात यह है कि आधुनिक विद्वानों ने पूरी दुनिया में प्राचीन संस्‍कृतियों के बीच पाए गए घनिष्‍ठ समानांतर को नोट किया है। तथापि, भारत में ही योग ने अपनी सबसे पूर्ण अभिव्‍यक्ति प्राप्‍त की। अगस्‍त नामक सप्‍तऋषि, जिन्‍होंने पूरे भारतीय उप महाद्वीप का दौरा किया, ने यौगिक तरीके से जीवन जीने के इर्द-गिर्द इस संस्‍कृति को गढ़ा। आओ चलो सब मिलकर भारतीय संस्कृति की इस हमले विरासत को आगे बढ़ाए। स्वच्छ वातावरण में इंसान के समक्ष बीमारियां भी नजदीक नहीं पहुंचती।  भगवान ने सब जीवों से श्रेष्ठ इंसान को बनाया है, लेकिन इंसान वर्तमान के इस आपाधापी युग में अपने तन-मन के विकास के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को योग को अपना दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए, तभी बीमारियों पर जीत हासिल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि योग करने के बाद दवा दारू की जरूरत ही नहीं पड़ती है। उन्होंने सभी आज अपने गांव के लोगों से स्वदेशी अपनाने, सुबह उठते ही मातृभूमि को नमन करने, माता-पिता के पैर छूने गाय को पालकर उसका दूध पीने का संकल्प दिलाया। योग परंपरा एक-दूसरे को जोड़ने का कार्य करती है। आधुनिक युग में सारे संसार में योग को प्रतिस्थापित करने का कार्य स्वामी रामदेव ने किया है।
योग प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है। योग से केवल शरीर ही स्वस्थ नहीं रहता है। बल्कि योग मानसिक तौर पर मजबूत करता है। इसलिए हर व्यक्ति को योग करना चाहिए।  ताकि भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य विरासत को आगे बढ़ाया जा सके। पूरा देश स्वस्थ रह सके।
शरीर, मन, भावना एवं ऊर्जा के स्‍तर र काम करता है। इसकी वजह से मोटेतौर पर योग को चार भागों में बांटा गया है : कर्मयोग, जहां हम अपने शरीर का उपयोग करते हैं; भक्तियोग, जहां हम अपनी भावनाओं का उपयोग करते हैं; ज्ञानयोग, जहां हम मन एवं बुद्धि का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग, जहां हम अपनी ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
हम योग साधना की जिस किसी पद्धति का उपयोग करें, वे इन श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी या अधिक श्रेणियों के तहत आती हैं। हर व्‍यक्ति इन चार कारकों का एक अनोखा संयोग होता है। ”योग पर सभी प्राचीन टीकाओं में इस बात पर जोर दिया गया है कि किसी गुरू के मार्गदर्शन में काम करना आवश्‍यक है।” इसका कारण यह है कि गुरू चार मौलिक मार्गों का उपयुक्‍त संयोजन तैयार कर सकता है जो हर साधक के लिए आवश्‍यक होता है। योग शिक्षा : परंपरागत रूप से, परिवारों में ज्ञानी, अनुभवी एवं बुद्धिमान व्‍यक्तियों द्वारा (पश्चिम में कंवेंट में प्रदान की जानी वाली शिक्षा से इसकी तुलना की जा सकती है) और फिर आश्रमों में (जिसकी तुलना मठों से की जा सकती है) ऋषियों / मुनियों / आचार्यों द्वारा योग की शिक्षा प्रदान की जाती थी। दूसरी ओर, योग की शिक्षा का उद्देश्‍य व्‍यक्ति, अस्तित्‍व का ध्‍यान रखना है। ऐसा माना जाता है कि अच्‍छा, संतुलित, एकीकृत, सच पर चलने वाला, स्‍वच्‍छ, पारदर्शी व्‍यक्ति अपने लिए, परिवार, समाज, राष्‍ट्र, प्रकृति और पूरी मानवता के लिए अधिक उपयोगी होगा। योग की शिक्षा स्‍व की शिक्षा है। विभिन्‍न जीवंत परंपराओं तथा पाठों एवं विधियों में स्‍व के साथ काम करने के व्‍यौरों को रेखांकित किया गया है जो इस महत्‍वपूर्ण क्षेत्र में योगदान कर रहे हैं जिसे योग के नाम से जाना जाता है। कोशिश रहेगी हर गांव व मोहल्ले में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग किया जाए। जिससे कि भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य विरासत को आगे बढ़ाया जा सके।
योग किसी खास धर्म, आस्‍था पद्धति या समुदाय के मुताबिक नहीं चलता है; इसे सदैव अंतरतम की सेहत के लिए कला के रूप में देखा गया है। जो कोई भी तल्‍लीनता के साथ योग करता है वह इसके लाभ प्राप्‍त कर सकता है, उसका धर्म, जाति या संस्‍कृति जो भी हो। योग की परंपरागत शैलियां : योग के ये भिन्‍न – भिन्‍न दर्शन, परंपराएं, वंशावली तथा गुरू – शिष्‍य परंपराएं योग की ये भिन्‍न – भिन्‍न परंपरागत शैलियों के उद्भव का मार्ग प्रशस्‍त करती हैं, उदाहरण के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग, ध्‍यान योग, पतंजलि योग, कुंडलिनी योग, हठ योग, मंत्र योग, लय योग, राज योग, जैन योग, बुद्ध योग आदि। हर शैली के अपने स्‍वयं के सिद्धांत एवं पद्धतियां हैं जो योग के परम लक्ष्‍य एवं उद्देश्‍यों की ओर ले जाती हैं। इसीलिए सभी को योग करना चाहिए है ।

#श्रीगोपाल नारसन
परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

विहिप की सरकार व मुख्य न्यायाधीश से अपील, शीघ्र प्रारम्भ हो राम मंदिर का निर्माण

Thu Jun 20 , 2019
केन्द्रीय मार्ग दर्शक मण्डल की हरिद्वार बैठक में संतों ने पारित किया प्रस्ताव हरिद्वार, जून 20, 2019.| विश्व हिन्दू परिषद् के केंद्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक के दूसरे व अंतिम दिन श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण का मामला छाया रहा. देश भर से आध्यात्मिक नगरी हरिद्वार पधारे पूज्य संतों का कहना था […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।