आन पड़ा संकट ऊपर,
जब प्राण पके अपने देखे ,
तरूओं ने फिर किया विचार,
अच्छे कल के सपने देखे।
मन भावे ना छांव हमारी,
बैठन से लगे कतराने,
कूलर एसी में बैठे हो,
मुंह हमको तुम लगे चिढ़ाने,
शान के चलते कमरों में अब,
मनीप्लांट ही दिखते हैं,
हमसे मुख मोड़ा है जिसने,
खुद को अच्छा गिनते हैं।
परोपकार की खातिर ही हम,
अपना दुख सह जायेंगे ,
गर्मी सर्दी पतझड़ का दुख,
हम किससे कह पायेंगे?
वट पीपल हैं बुजुर्ग हमारे,
इनका भी कुछ मान रखो,
हम तुम्हारे-तुम हमारे,
इतना बस तुम ध्यान रखो,
जाने कब तक ऐसा हम,
इकतरफा प्यार करेंगे अब,
गले काटकर वृक्षों के,
अपना व्यापार करेंगे सब।
हे मानव !अब रखो कुल्हाड़ी,
और ना हम पर धार धरो,
जिस थाली में खाते हो,
उस थाली में मत छेद करो।
एक निवेदन दुनिया से है,
हरी -भरी अब धरा रहे,
प्राणवायु पाकर हमसे,
प्राणी खुशियों से भरा रहे।
सोचो और विचारो तुम,
अब बेहतर कल की आस करो,
खूब-खूब हो पौधारोपण,
ऐसा भरसक प्रयास करो,
ठीक समय पर समझो संकट,
कल अपना सरल बनाओ तुम,
जन गण के मन में भी ऐसी,
सुंदर अलख जगाओ तुम,
धरती होगी हरी भरी और,
तन-मन हरियाली होगी,
सुंदर बाग बगीचे होंगे,
जन-जन खुशहाली होगी,
अब विचार का वक्त नहीं,
मत इतना तुम ये पाप कर
अतुल कुमार शर्मा
संभल उत्तर प्रदेश