शाम के पांच बजने वाले थे । बारिश का मौसम होने के बाद भी आसमान पूरे दिन से साफ था । राधा ऑफिस से निकलने ही वाली थी कि देखते – देखते काली बदलियों ने नीले आसमान को लील लिया । बीच बीच में इनकी गर्जना से रह रह कर बिजली भी कौंधने लगी । मौसम के इस तेवर को देखकर अंदाज लगाया जा सकता था कि मूसलाधार बारिश तो होकर रहेगी।
वैसे तो राधा हर परिस्थिति से जूझना जानती पर बरसात के इस मौसम से वह सबसे ज्यादा डरती थी। खैर ! उसने अपना काम समेटा । पार्किंग से स्कूटी निकाली और निकल पड़ी अपनी – सात साल की सुरभि बिटिया को स्कूल से लेने के लिए । साढ़े पांच बजे छूटता है उसका स्कूल ।
रोज का यही क्रम है राधा का । सुबह दस बजे स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस जाना और शाम को उसे स्कूल से लेकर बाजार से जरूरी सामान लेते हुए घर लौट आना।
आज मौसम के तेवर देख कर राधा को लग रहा था , माँ – बेटी का बरसाती – स्नान होकर ही रहेगा । विचारों का सैलाव और स्कूटी की रफ़्तार आज रोज से कुछ ज्यादा ही तेज थी । बादल भी रह – रह कर बरसने को आतुर , गरज रहे थे ।
राधा जल्दी से स्कूल पहुंची और सुरभि को लेकर घर आ गई । रास्ते में बेटी ने कई बार टोंका भी – ममा , इतनी तेज स्कूटी क्यों चला रही हो । ये गरजने वाले बादल हैं , बरसेंगे नहीं ! पर राधा जानती थी -देर सबेर ये बरसेंगे जरूर ।
सुरभि की बात सुनकर राधा उदास स्वर में बोली – बेटी ! कई बार , बादल बरसें भले ही न पर उनकी गर्जना और कौंधती – गिरती बिजली से जो नुकसान होता है , वह सब कुछ तहस – नहस कर देता है जिसे सामान्य होने में बहुत समय बीत और रीत जाता है।
” … मतलब ममा , अभी तू नहीं समझेगी बेटी । ” कहते हुए राधा ने अपनी स्कूटी घर के अहाते में खड़ी कर दी ।
अपने कमरे में जाते हुए सुरभि बोली – देखा ममा ,मैने कहा था न – ये बादल सिर्फ गरज कर ही रह जायेंगे ,बरसेंगे नहीं ।
…. तभी जोर की बिजली चमकी जो कहीँ न कहीँ तो गिरी ही होगी।
उसके जीवन में गिरी बिजली की ही तरह …..।
कॉफी बनाते हुए , राधा यकायक अपने अतीत में चली गई । अब अंधियारी और गर्जना बाहर से ही नही उसके मन को भी विचलित कर रही थी ।
…. बरसात का यही मौसम तो था जब दमे का शिकार हो उसके पिता ने उसे माँ के हवाले छोड़ अंतिम सांस ली थी । पिता के यूँ असमय चले जाने से माँ भी तो कितना टूट चुकी थी । फिर राधा के विवाह की चिंता ने उन्हें भी बीमार कर दिया । अब घर के हालात तो राधा को ही सुधारना था ।
बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी उस पर । सामना किया राधा ने इसका और एक अशासकीय संस्थान में नौकरी कर ली । हालात सुधरने लगे मगर माँ ने बिस्तर पकड़ लिया। अब घर के काम और नौकरी की दोहरी जिम्मेदारी ने उसे भी मन से कमजोर कर दिया।
रंगीन सपनों की उम्र श्याह सपनों में बदलने लगी मगर तभी उसके जीवन में सहकर्मी रमेश का आगमन हुआ। डर के साए में सतरंगी सपने धीरे – धीरे खिलने लगे।
इसी बीच फिर आया बरसात का मौसम जो जाते – जाते अपने साथ ले गया , माँ को भी । असहाय राधा कुछ नहीं कर सकी । अनाथ हो गई ।
ऐसे में समाज की परवाह किए बिना रमेश ही उसका सहारा बना और फिर एक दिन दोनों परिणय बंधन में बंध गए। समय बीतता गया और साल भर बाद ही उनकी जीवन बगिया – महक उठी । बेटी सुरभि के आगमन से ।
सब कुछ ठीक चल रहा था पर न जाने क्यों बरसात का मौसम आते ही – राधा एक अनजाने भय से ग्रसित हो जाती । रमेश उसे समझाता पर बारिश के इस मौसम में उसका डर बरकरार रहता।
ऐसे ही पांच साल बीत गए। बरसात का मौसम हर साल आता और चला जाता । अब राधा के मन का डर भी खत्म होने लगा था ।
तभी , एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में रमेश को दो साल के लिए अमेरिका जाना पड़ा । मजबूरी थी । अब राधा और सुरभि अकेले रह गए। बरसात फिर उसे डराने लगी । समय बीतता गया । ये दो साल भी निकल गए।
आज फिर बादल गरज रहे थे और बिजली चमक रही थी । लग रहा था जैसे आसमान ही फट जाएगा। इस मूसलाधार बारिश में देर रात अचानक दरवाजे की घण्टी बजती है । इस समय कौन होगा ? रमेश को आने में तो अभी हफ्ता भर बाकी है ? यही सोचते हुए वह उठती है ।
अनजाने भय से ग्रसित राधा जब दरबाजा खोलती है तो सामने बारिश में भीगे रमेश को खड़ा पाती है। अचानक रमेश को अपने सामने पाकर उसकी आँखें भी बरस पड़ती हैं ।
” हर बारिश दुःखद नही होती … ” – रमेश कहता है । मेरे आने समय से पहले आने की खबर तुम्हें इसीलिये नहीं दी – राधा ! ताकि तुम्हारे मन में बैठा बरसात के मौसम का यह डर तुम्हारे ही आंसुओं की बारिस से हमेशा के लिए धूल जाए।
फिर एक बात जान लो मौसम चाहे कोई हो – सबके जीवन में होनी या अनहोनी तो होती ही है। इससे क्या डरना ?
…चलो , अब दरबाजे से हटो भी । बड़े जोर की भूख लगी है।
# देवेन्द्र सोनी , इटारसी