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थाल पूजा का लेकर चले आइये /
च्नद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना /
आरती के दियो से करो आरती /
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना /
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की /
उसको यूही दबाने से क्या फायदा/
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां /
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।/
डग मगाते कदमो से फिर जाओगे तुम /
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा /1/
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
च्नद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना /
पूरे जीवन में तूने झूठ फरेब किया /
लोभ माया को तूने सदा ही चुना /
नाव जीवन की तेरी मझधारा में फसी /
अब याद आ रहे तुम को चन्द्रप्रभु /
जबकि तुम को मिला ये मनुष्य जन्म /
क्यों न सार्थक इसे तूने किया /2/
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
च्नद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना /
जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो /
जिनवाणी मां का तुम स्वाध्या करो /
अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो /
णमोकार महामंत्र का निश दिन जाप करो /
अब भी न जगे तुम तो बहुत पस्ताओगे /
फिर किस आधार पर मनुष्य जन्म तुम फिर पाओगे /३/
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
च्नद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना /
आरती के दियो से करो आरती /
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना /
थाल पूजा का लेकर चले आइये /
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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