बस रहने दो,
बस रहने दो ।
और ज़हर न घोलो ।
तन में घोला,
मन में घोला,
जन-जन में विष नफ़रत का घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!!
बस रहने दो,
बस रहने दो,
और ज़हर न घोलो ।।1।।
जल में घोला,
हवा में घोला,
विष मृदा में घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!!
बस रहने दो,
बस रहने दो,
और जहर न घोलो ।।2।।
फल में घोला,
फूल में घोला,
मृदु विष शाक-पात में घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!
बस रहने दो,
बस रहने दो,
और जहर न घोलो।।3।।
गांव में घोला,
शहर में घोला
घर -घर में नफरत घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!
बस रहने दो ,
बस रहने दो,
और जहर न घोलो ।।4।।
देश में घोला,
विदेश में घोला,
इस ‘गोला’ पर विष ही विष घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!
बस रहने दो ,
बस रहने दो,
और जहर न घोलो ।।5।।
हम में घोला,
तुम में घोला,
द्वेष, प्रेम में घोला ।
अब तो सब जन मिलकर ये बोलो !!!!
बस रहने दो ,
बस रहने दो,
और जहर न घोलो ।।6।।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।