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ये जुदाई नहीं गवारा है ।
एक तू ही मिरा सहारा है।।
मैने माना खुदा तुझे अपना,
क्या ये कसूर भी हमारा है।।
ख़्वाब मीठे भला रहें कैसे,
नैन के जल का स्वाद खारा है।।
फूल खिलने लगे बगीचे में,
प्यार होने को अब दुबारा है।।
आओ”ममता”गले लगो फिर से,
अब यही रब का भी इशारा है।।
डाॅ0 ममता सिंह
एसोसिएेट प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
के०जी०के०(पी०जी०) कालेज
मुरादाबाद
स्थायी निवास- मुरादाबाद
कविताएँ ,गीत आदि लिखने का शौक
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