#आलोक त्रिपाठीशास्त्री साहित्याचार्यएम ए हिन्दी लिट्रेचरइंदौर ,मध्यप्रदेश
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हिन्दी तुमसे प्रेम है ।
अनुराग है ।
तेरे कारण मन प्रफुल्लित है।
जीवन मे आह्लाद है ।
तुम्हे नमन करता हू ।
बंदन करता हू ।
तेरे हि स्पर्श से नित
अपनी वाणी तुमको
अर्पण करता हू।
तू जननी है मुझे दुलारती है।
मेरे अब्यक्त शब्दों को संवारती है।
पुत्रवत सदा मेरे लिये तू।
वाणी बनकर राहैं बुहारती है।
तेरे आंचल मे सदा सुख पाऊं।
जबभी जन्म हो भारत मे ।
मै तेरा हि गुण गाऊं ।
तू ममता है मूर्तिरूप।
तू समता है शब्द कूप ।
तू विधाता है कविता की मेरी
तू छंद जीवन अनूप ।।
शब्दों का प्रवाह बनकर साथ रहना ।
मेरे पथ का संचालन तू हि करना ।।
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