
सुनो सुनता हूँ में
अपने हृदय की पीड़ा।
न दिल में मेरे प्यार
उमड़ता है अब कभी।
खाली जो कर दिया
हमने इसके भंडार को।
तो कैसे लूटा पाएंगे
अब प्यार हम यहां।
करते रहे पूजा जिस
प्यार की जीवन भर।
भरी लगने लगा अब
ये प्यार वाला शब्द।
राधाकृष्ण और मीरा आदि की
कभी गाथाएँ गाई जाती थी।
जो प्यार से कबीर और
सूर आदि गाया करते थे।
अब अकाल सा पड़ गया
इन प्यारी रचनाओं का।
मिटती जा रही है अब
अपने देश की संस्कृति।
कैसे बचेगा अब आगे
हमारे देश का इतिहास।
क्योंकि हर चीज अब यहां
देखो बिकती जा रही।
मिट्टी पानी पौधे और
बिकने लगे अब बेयर।
जो पहले प्यार मोहब्बत से
किसीको भी दे दिये जाते थे।
अब तो सब कुछ बिक रहा
राम की जन्मभूमि पर।
भाई बहिन शादी करने लगे
राधाकृष्ण की जन्मभूमि पर।
कितना कुछ बदल दिया
लोगों की अब सोच ने।
पैसों की खातिर बेटाबेटी ही
हत्या कर रहे अपने माँबाप की।
प्यार मोहब्बत अब खत्म
हो रहा इंसानो के अंदर।
होता है जुल्म किसी पर तो
और जुल्म करते है रक्षक।
क्योंकि पैसे में सब बिकते है
आज अपने देश में।
माँ बाप बहिन बेटियां
और बिकते नाती पोते।
बस दाम देने वाला
होना चाहिए कोई भी।
बेच दूंगा मैं खुदको भी
बस पैसे मुझे चाहिए।
कैसी सोच हो गई अब
अपने देश के लोगों की।
कहा बचा है अब वो
स्नेह प्यार अपने देश में।
अपने इस देश में….।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)