संकट में विज्ञान पत्रिकाओं का भविष्य

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✍🏻 डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

हिन्दी की वैश्विक प्रगति हो रही है, चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में अविष्कार भी हो रहे हैं, मध्यप्रदेश में तो अभियांत्रिकी व मेडिकल पाठ्यक्रम भी हिन्दी भाषा में पढ़ाया जा रहा है, परन्तु विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी लेखन व विज्ञान पत्रिकाओं को अब देखना भी दूभर होता जा रहा है।
निजी व्यावसायिक क्षेत्र को लगता है कि विज्ञान पत्रिकाओं के प्रकाशन से लाभ नहीं होता और लेखकों का अभाव भी है । आज लोगों की दिलचस्पी वैज्ञानिक खोजों से ज़्यादा तकनीक में होती है, इसलिए कम्प्यूटर, मोबाईल, सूचना तकनीक एवं इलेक्ट्रॉनिकी आदि विषयों पर अन्य भाषाओं में पत्रिकाएं निकलती रहती हैं, किंतु विज्ञान के क्षेत्र में कोई पत्रिका दिखाई भी नहीं दे रही ।


क्या बच्चों के भविष्य के लिए हिन्दी में विज्ञान संबंधित आलेख व पत्रिकाओं का पुनर्जन्म होना आवश्यक है??
बचपन में बेनेट एवं कोलमेन कंपनी की साइंस टुडे, सीएसआईआर की अंग्रेजी विज्ञान पत्रिका साइंस रिपोर्टर और हिंदी पत्रिका विज्ञान प्रगति प्रचलित थी। जब बेनेट कोलमेन ने अपनी पत्रिका साइंस टुडे बंद की तो कई समाचारपत्रों ने लंबे संपादकीय लिखे थे, लेकिन आज तक उसका स्थान रिक्त पड़ा है। इसके बाद दो प्रमुख विज्ञान पत्रिकाएं और बंद हो गई। इनमें सबसे पहले एनआरडीसी की पत्रिका ‘इंवेंसन इंटेलिजेंस’ का नाम है, जो 1965 से अंग्रेजी में छपना शुरू हुई थी वो भी बंद हो चुकी है। इसके बाद संस्थान ने 40 सालों से छप रही हिंदी विज्ञान पत्रिका ‘आविष्कार’ को भी बंद कर दिया है। आविष्कार तब बंद हुई, जब संस्था के प्रबंध निदेशक किसी कारण निलंबित कर दिए गए और पत्रिका का काग़ज़ का कोटा रुक गया। ये पत्रिकाएं फिर से निकलेंगी या नहीं, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता परन्तु प्रकाशकों से एक अदद उम्मीद तो की ही जा सकती है कि विज्ञान संबंधित आलेखों का संग्रह, अविष्कारों और वैज्ञानिकों की जानकारी आदि विषयों पर पत्रिकाओं को निकालना चाहिए या आलेखों को सहज उपलब्ध पोर्टल पर भी प्रकाशित होना चाहिए इसके लिए विज्ञान विषय से जुड़े प्राध्यापकों, अध्यापकों व शोधार्थियों को भी आगे आकर लेखन करना चाहिए ताकि भविष्य के नौनिहालों में से फिर कोई ‘होमी जहाँगीर भाभा’ या ‘सी.वी.रमन पैदा’ हो सके।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
सम्पादक, मातृभाषा डॉट कॉम, इंदौर वेबसाइट: www.arpanjain.com

[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।]

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।