ग़ज़ल बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे। खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।। किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला, कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे।। जहाँ आप पहुँचे छलाँगें लगा कर, वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे।। पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी, उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।। गिरा […]
कविता दशक
सॉनेट शाला करूँ अर्पण-समर्पण मैं, जगे अभ्यास की ज्वाला। करूँ छंदों का तर्पण मैं, तृप्त हों हृद-सलिल-शाला। भवानी शारदा माता, रखूँगी एक अभिलाषा। सुमति अल्पज्ञ भी पाता, समर्पण ही सहज भाषा। जगाऊँ नाद मैं ऐसे, जगत गूँजे अलंकारों। सकल ब्रह्मांड में जैसे, शबद हुंकार चौबारों। सुगम-सी काव्यमंजूषा। छंद सॉनेट की […]
