जमी थी महफ़िल हुश्न-ओ-शवाब की, उनके साथ डूबना भा गया। निहारा जब नयन-ए-शराब को, तो मुझे अजीब नशा छा गया।। समेट लायी हूं मैं यादों में, झील किनारे बिताए खुशनुमा पल। इन शरारती नजरो को उनका, इस अदब से मुस्कराना खा गया।। ना जाने कैसी अजब कशिश है, उस शख्श-ए-ख्वाब […]