इंदौर। साहित्य जगत में सबसे अधिक यात्रायें करने वाला ’यायावर’ के नाम से सुविख्यात व्यक्ति अगर कोई जाना जाता हैं वो हैं कालजयी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन है। 09 अप्रैल 1893 को जन्में और 14 अप्रैल 1963 को जीवन की अंतिम यात्रा करने वाले, 150 से अधिक कृतियों के रचयिता राहुल सांकृत्यायन, केदारनाथ पांडेय, स्वामी रामाश्रय आदि के नाम से भी जाने गये।
वे ग्यारह वर्ष की अल्प आयु में अपना घर छोड़कर ज्ञानार्जन के लिए निकल पड़े। उनका कहना था कि जिंदगी एक यात्रा है और इसको सार्थक बनाना चाहिए।
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति ने कालजयी साहित्यकार स्मरण शृंखला में 09 अप्रैल को उनकी जयंती पर याद करते हुए राहुल सांकृत्यायन के प्रति अपनी साहित्यिक पुष्पांजलि अर्पित की।
उनके साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व पर साहित्य मंत्री डॉ. पद्मा सिंह ने विचार व्यक्त किये और बताया कि वे कई भाषाओं के ज्ञाता थे और भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रबल पक्षधर भी। श्री सांकृत्यायन का कहना था ‘भागों नहीं दुनिया को बदलो। प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने बताया कि इस गोष्ठी में इस महान साहित्यकार के प्रति कई साहित्यकारों ने अपने उद्गार व्यक्त किये।
डॉ. अखिलेश राव ने कहा कि उन्होंने जितनी यात्राएँ की वह स्वयं के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए थी और उनकी यात्रायें ज्ञानार्जन के लिए होती थीं।
डॉ. नीरज दीक्षित (खंडवा) ने कहा कि वे अद्भुत विलक्षण प्रतिभा के धनी थे उनमें ज्ञान पिपासा बहुत थी। भरत उपाध्याय ने उन्हें पाली और प्राकृत का भी महान विद्वान बताया। डॉ. सुनिता फड़नीस ने कहा कि घुम्मकड़ होना उनका धर्म था। ’वोल्गा से गंगा तक’ उनकी महान कृति है।
डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने उनके विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि उनका मानना था कि मानसिक क्रांति किसी भी क्रांति से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। वे जातिवाद के खिलाफ थे। डॉ. सुनीता श्रीवास्तव ने उन्हें साहित्य जगत का महान प्रेरणास्रोत साहित्यकार बताया। उनके ज्ञान के कारण ही उन्हें महापंडित की उपाधि प्रदान की गई थी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने किया। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ आभार समिति के प्रधानमंत्री अरविन्द जवलेकर ने व्यक्त किया। इस अवसर पर अनिल भोजे, राजेश शर्मा, अमर सिंह मानावत, विजय खंडेलवाल, दिनेश दवे आदि काफी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।