महिलाओं की बात ही कुछ और है

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हर पल जीवन का सँवार कर
नारी भर देती है गागर में सागर
जहाँ जहाँ पहुँच सकते हैं भास्कर
तोड़ लाती ये तारे वहाँ जाकर
ये छाई रहती हर डगर,हर पहर
क्योंकि इनके बिना नहीं है गुजर-बसर
इसीलिए कहते हैं
महिलाओं की बात ही कुछ और है…

दिनचर्या इनकी बड़ी व्यस्त रहती है
सूरज के साथ उठती हैं
चाँद का भी साथ देती हैं
कहीं कुछ छूट न जाए
कोई काम अधूरा न रह जाए
पैरों में चकरी लगाए रहती हैं
इसीलिए कहते हैं
महिलाओं की बात ही कुछ और है…

गृहणी हो या नौकरीपेशा
खून पसीना एक कर देती
भई,इनकी तो कोई सानी नहीं
काम छोटा या बड़ा कैसा भी हो
क्या कहा ? इनके काम में गलतियाँ ?
गलतियाँ तो बस ढूंढते ही रह जाओगे
इसीलिए कहते हैं
महिलाओं की बात ही कुछ और है…

सुंदर सुघड़ सुनैना गौरवर्णी होती हैं
पर सौम्य,शालीन, अनुशासित भी होती
समाजसेवी, सहयोगी, देशप्रेमी होती
हर सुदामा के लिए कृष्ण बन जाती
राजनीति में भी दख़ल ये रखती
जहाँ खड़ी हो जाती,पीछे कतार लग जाती
इसीलिए कहते हैं
महिलाओं की बात ही कुछ और है…

पुरुषों के कंधों से कंधा मिला कर चलती हैं
डॉक्टर,इंजीनियर, शिक्षक,सैनिक बनती
हर क्षेत्र में परचम हैं लहराती
पर सबसे पहले ये माँ जीजाबाई सी होती
संतान को ख़ुद से भी काबिल बना कर ही दम लेती
क्योंकि शिक्षा के साथ संस्कार भी ये देती हैं
इसीलिए कहते हैं
महिलाओं की बात ही कुछ और है…

सरला मेहता

इंदौर म प्र

matruadmin

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