धरा-गगन के बीच पसरता… जो अनंत आकाश, सत्य-संध शायक बेधता है … उसको बन पुंज प्रकाश। पुण्य धरित्री-धरा-धर्म हित, जो प्राणार्पण करते हैं; सकल छद्म,षडयंत्र समर कर, महाप्रलय सम भिड़ते हैं। शूर नहीं,भिक्षुक होते हैं… कभी विजय-जीवन के। वरते स्वयं स्वयं-जय को… निज भुज-बल से वीरों के। सकल मनुजता की […]