हमने बोए थे गुलाब, क्यों नागफनी उग आई ? दूध पिलाकर जिनको पाला, बन विषधर डसते हैं, जिन पर पैर जमा बढ़ना था, वे पत्थर धँसते हैं। माँगी रोटी, छीन लँगोटी जनप्रतिनिधि हँसते हैं। जिनको जनसेवा करनी थी, वे मेवा फ़ंकते हैं।! सपने बोने थे जनाब पर नींद कहो कब […]
ओ मेरे प्रिय विरोधी, चिर प्रगति-पथ अवरोधी। तुझे नमस्कार है- शत-सहस्त्र प्यार ही प्यार है। क्योंकि, तेरे विरोध की चिंगारियाँ हीं- मेरी महत्वाकांक्षाओं के यज्ञ की- पवित्र रश्मियाँ हैं, आलोक में जिनके- मेरी इच्छाएँ चढ़ती हैं- प्रगति-पथ की सीढ़ियाँ। कैसे कह दूँ मैं- तुम मेरे विरोधी हो… चिर प्रगति-पथ अवरोधी…? […]