आज जीने के लिए, इक शिखण्डी चाहिए॥ औंधे मुंह है रुढ़ियां धूल भरी है आँख, चिकना खीरा रो रहा भीतर देखे फाँक। इक नए संधान को, बस रणचंडी चाहिए॥ बन्दूकी आग डर रही उछले कंकड़-पत्थर, भूख करे गंधर्व गान भरे नोट मुह शंकर॥ आत्मरक्षा कर लिए, एक बन्दी चाहिए॥ फटा […]