परिचय : कमल कान्त शर्मा पेशे से वरिष्ठ अध्यापक हैं। आपका निवास राजस्थान के ग्राम छापुड़ा कलाँ(जिला जयपुर) में है। आप रचनाधर्मी हैं और रावण ( दूसरा पहलू) खण्डकाव्य का लेखन जारी है।
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नील सरोरुह बीच खड़ी।
मणि,मुक्ता,माणिक की सी लड़ी॥
दीप्त वर्ण सुवर्ण चरी।
नव कली भांति आभा निखरी॥
पुष्पभारनमिता कमणी।
सद्यः स्नाता कमसिन रमणी॥
जब केशराशि लहराती है।
ऐसा आभास कराती है॥
ज्यों नील गगन से श्यामा बदली।
मानो बूंदें बरसाती है॥
#कमल कान्त शर्मा
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