आदमी आदमी न रहा, कभी सब प्राणी मात्र थे। फिर जंगल खत्म होते गए, इंसान सभ्य होते गए… स्वार्थ बढ़ता गया…। अर्थ जितना बढ़ा… सोच घटती गई, हुए कमरे नए… उसमें चीजें नई…। भोर-दोपहर खरीदा, और शाम सुरमई…! बिक गया दीन… ईमान इक भूख पर। कितने अरमां दफन, हैं इक […]