मै धरति पुत्र हु और इस धरा पर अपने दम पर जीता हु ,
चीर के सीना अपने खेतो का अपना हिस्सा लेता हु ,
जब तुम सोते हो गहन निद्रा में शीतल शीतल कमरों में ,
जब तुम होते हो माल और रेस्टारेंटो के शहरो में ,
तब में चिल चिलाती धुप में खेतो को पानी देता हु ,
मै धरति पुत्र हु और इस धरा पर अपने दम पर जीता हु,
चीर के सीना अपने खेतो का अपना हिस्सा लेता हु |
जब तुम धारण करते हो महंगे महंगे सूट बूट और साड़िया,
खाते हो रेस्तारेंटो में महंगा खाना और घुमाते हो गाडिया ,
तब में फटे हुए कुर्ते में सर पर गोबर का टोकना ढोता हु ,
मै धरति पुत्र हु और इस धरा पर अपने दम पर जीता हु,
चीर के सीना अपने खेतो का अपना हिस्सा लेता हु |
मै अन्नदाता हु इस देश का मेरा कुछ तो सम्मान करो ,
मजदूरो से बदतर हे जीवन,स्वाभिमान का तो मान करो,
मेरी फसलो से व्यापारी और सरकारों के वारे न्यारे हे,
मेरी बदहाली और गरीबी पर संवेदना हिन ये सारे हे,
अपनी फसलो के वाजिब दाम का आवेदन में देता हु,
मै धरति पुत्र हु और इस धरा पर अपने दम पर जीता हु,
चीर के सीना अपने खेतो का अपना हिस्सा लेता हु ,
ये मेरी कमजोरी हे में राजनीति नहीं जानता हु ,
मै भोला भाला किसान सबको अपना मानता हु ,
जो मीठी मीठी बात करे उसके झासे में आ जाता हु ,
राजनीति के इस दल दल में अपने को ठगा सा पता हु,
करोडो का खाद्यान्न हडतालो को दे आता हु ,
बदले में पुलिस से लाठी पीठ पर खाता हु ,
मै धरति पुत्र हु और इस धरा पर अपने दम पर जीता हु,
चीर के सीना अपने खेतो का अपना हिस्सा लेता हु |
#राजेश भंडारी “बाबू”
इंदौर(मध्यप्रदेश)