” मेरी कलम रो रही है ” – एक व्यग्र हृदय का दर्द 

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rupesh kumar
कविता के संबंध में मेरी मान्यता है कि कुछ लोग कविता लिखते हैं, कुछ लोग कविता पढते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कविता को जीने की वस्तु समझते हैं। कवि रूपेश कुमार तीसरे प्रकार के व्यक्ति हैं। विगत कुछ महीनों से उनकी कविताओं पर मेरी दृष्टि अनवरत रही है और ऐसा बार-बार लगा है मुझे कि रूपेश ने कविताओं को अपने जीवन से जोड़ रखा है। कविता जब जीवन से जुड़ जाती है तो ‘मेरी कलम रो रही है’ के रूप में बाहर आती है।
                        रूपेश कुमार चैनपुर जिला सिवान बिहार के निवासी हैं और विज्ञान के विद्यार्थी हैं। साहित्य में खासी अभिरुचि रखने वाले रूपेश अपने भावों को सरस शब्दों में निरंतर अभिव्यक्त करते रहते हैं। इनकी कविताओं में गाँव की मिट्टी की खुशबु महसूस की जा सकती है। सुंदर व सरस शब्दों में ऐसी कलात्मक अभिव्यक्ति देते हैं कि मन मुग्ध हो जाता है। ” मेरी कलम रो रही है ” कवि का पहला काव्य संग्रह है जिसे वर्जिन साहित्य पीठ ने आनलाइन प्रकाशित किया है। इसमें कुल 21 कविताएँ हैं और सभी अपने आप में लाजवाब।
‘काश तुम आ जाते इस बार’ कविता में कवि हृदय बेचैन दिखता है। वह वर्तमान में जीना चाहता है। उसे भय है कि कहीं यह खुशनुमा समय व्यर्थ न चला जाए। भागदौड़ की जिंदगी में प्रेम और सकून के जो दो पल मिले हैं, कवि हृदय उसे पूरी तरह जीने को आकुल है। इसलिए वह प्रियतम का आह्वान करता है –
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मौसम बेगाने होते हैं / खुद से अनजाने होते हैं/ कब बदल जाएं पता नहीं /काश तुम आ जाते इस बार’
और जब प्रेम का संदेश आ जाता है तो जैसे मरूभूमि में बरसात सी होने लगती है। बेरंग हृदय अचानक प्रेम के रंगों में रंग जाता है और एक नवीन आशा का संचार होने लगता है –
‘जब प्रेम का संदेशा आया/बेरंग दिलों में रंग मिलाया’
वैसे तो संग्रह में मात्र 21 कविताएँ ही हैं पर युवा कवि रूपेश जी की यह प्रथम प्रकाशित पुस्तक ‘गागर में सागर’ वाली कहावत को पूर्णतः चरितार्थ करती है। कवि ने जीवन के लगभग समस्त रागों का समावेश किया है अपनी कविताओं में। इसलिए प्रेम के गीत गाते – गाते अचानक वो बचपन की गलियों में पहुँच जाते हैं और अपनी कविता ‘वो बचपन की याद फिर आयी’ में कहते हैं –
‘वो चिड़ियों की चहचहाहट /वो झूमती सी चांदनी /खेतों में खिलखिलाती वो रोशनी /वो भौंरों के संग फूलों की मुस्कुराहट ‘
फिर बचपन की यादों से अचानक बाहर आकर कवि क्रांति का मशाल जलाते नजर आते हैं अपनी ओजमय कविता ‘साहित्य क्रांति हूँ मैं ‘ में –
‘ क्रांतिकारियों में धधकने वाली क्रांति की आग हूँ मैं ‘
और फिर वापस प्रेम की वादियों में। कवि की मन:स्थिति बदलती रहती है जो कभी कभी उसे अवसाद के अंधेरों में लेकर जाती है-
‘याद करो जरा/वो मेरा प्यार /वो तेरा इकरार /इकरार के बंधन तोड़ /इंकार से नाता जोड़ दिया /ये तूने क्या किया ‘
प्रेम में धोखा उसे ऐसा दिग्भ्रमित करता है कि वह पूरी दुनिया को ही धोखेबाज समझ बैठता है। कवि के अबोध मन को लगता है कि हर चीज, हर भाव, हर राग ने उसे धोखा दिया है –
‘ ये दुनिया धोखेबाज है /हर जगह धोखा ही धोखा/लगता है जैसे /बिकता रहता है धोखा’
और इसी क्रम में वह जिंदगी को भी कोसता है। कवि हृदय जीवन की बदलती हुई अवस्थाओं से परेशान है और उसे लगता है कि जिंदगी फरेब कर रही है उसके साथ-
‘पूर्णविराम दुख में न सुख में /हर जगह अल्पविराम छोड़ जाती है। ये फरेबी जिंदगी’
लेकिन इन सबके बावज़ूद कवि रूपेश जी को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास भी है और वे साहित्य साधना के दम पर समाज को नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं अपनी कविता ‘साहित्य एवं समाज ‘ में –
‘ समाज को साहित्य का मिला है सहारा/भला उन सहारों को हटाओगे कबतक’
और कवि की यह प्रतिबद्धता उसे परिस्थतियों से ‘समझौता’ न करने की हिम्मत देती है –
‘जिंदगी बेजान क्यों /रखना इसे जीवंत है/ वरना समझौते की आड़ में/ जिंदगी का अंत है’
एक बार फिर कवि हृदय भावुक हो उठता है और पूछता है अपने प्रियतम से –
‘ अस्तित्व क्या तेरे जीवन में मेरा/एहसास तुझे भी है /मुझे भी’
कवि हृदय की भावुकता उसे चैन से सोने तक नहीं देती और खामोश रातें डराती है उसे-
‘ नींद नहीं आती रातों में’
लेकिन आशा लगातार साथ बनी रहती है जो कवि को विकट राहों में भी बढते रहने का साहस देती है –
‘ छोड़ो न तुम आशा/सफलता की यही परिभाषा’
मिश्रित रागों से पूर्ण कवि हृदय नारियों की वर्तमान दशा पर भी चीत्कार उठता है और कवि की कलम रोते हुए कहती है –
‘ उसको तुम आजाद करो/ जो नारी का सपना हो/उसको भी स्वीकार करो’
दूरियों की वजह से रिश्तों में बढती जा रही खटास से व्यथित कवि चाहता है कि ये दूरियां मिटे और रिश्ते संवरें-
‘दूरियां दिल से मिटाते रहिए/कलम निरंतर चलाते रहिए /दूरियां दिल से मिटाते रहिए जिंदगी एक रेलगाड़ी है /जो धीरे-धीरे दूरियां बनाकर चलती है’
अनेक प्रकार की मनोदशा से गुजरते कवि को अचानक सुबह की पहली किरण में नूतन आशा नजर आती है –
‘सुबह की पहली किरण /तरंग लाती है /नये फूल खिलाती है /सुबह की पहली किरण’
अनेक प्रकार के रागों से सज्जित कविताओं के बाद कवि ने बेहद सारगर्भित शब्दों में’ माँ’ शीर्षक एक कविता की रचना की है जो संग्रह की आत्मा भी है –
‘पृथ्वी की कठोरता है /गंगा की पवित्रता है /सौंदर्यमयी है /प्रेम की प्रतिमूर्ति है ‘
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कवि रूपेश कुमार जी ने एक उत्कृष्ट काव्य सृष्टि की है। कविताओं में कुछ स्थानों पर व्याकरण के दोष हैं पर इनका प्रथम सृजन समझकर उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।
अंत में यही कहूंगा कि ‘ मेरी कलम रो रही है’ साहित्य की एक अमूल्य निधि है। एकबार जरूर पढना चाहिए।

    #रुपेश कुमार

परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।

धन्यवाद!!

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