मनुष्य की निजता (प्राइवेसी)उसकी सबसे बड़ी पूँजी है,सदैव एक सीमा रेखा खींकर रखिए। इस सीमा को लांघने से पहले हर कोई,चाहे वह आपके प्रियजन ही क्यों न हों, एकबार पूछने को विवश हों कि-क्या मैं इस सीमा के अन्दर प्रवेश कर सकता हूँ? और आप सामाजिक,परिवारिक पर्यावरण में भले ही जितने परावलम्बी(निर्भर)हों,यहाँ पूरी तरह से स्वतंत्र हों।
आपकी निजता ही आपका आसमान है। एकदम बाधा रहित,जहाँ आपकी कल्पनाएँ,खुले व्योम में आंख बंद कर के किसी भी दिशा में उड़ सकें। आप जब उड़ान भरने के लिए पंख फैलाएं तो ऐसा न हो कि, पिंजरे की खांचों से टकराकर चोट खा जाएं।
आपके जीवन भवन का हर तल भले ही कई आधार स्तम्भों पर क्यों न टिका हो,सम्बन्धों और बंधनों की दीवारों से निर्मित इसके कमरों में चाहे जितने हवादार और बड़ी खिड़की-दरवाजे क्यों न बनवाए गए हों,एक झरोखा आपका अपना अवश्य होना चाहिए, जो आपके पसंदीदा कमरे में आपकी पसंद की दीवार पर बना हो।
जब आप दुनिया और उसकी दुनियादारी निभाते-निभाते थककर चूर हो जाएं,बड़ी-बड़ी खिड़कियों और दरवाजों से आने वाली हवा में दम घुटता-सा प्रतीत हो,तब आप अपनी ‘निजता’ के कक्ष में बैठ सकें। एक छोटा-सा अपना झरोखा,जहां से अपने आसमान को निहार सकें, पंख पसार उड़ने की कल्पना कर सकें, अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को अपने आसमानी कैनवास पर अपनी रुचि के अनुरूप कुछ आंक सकें।
या कुछ पल केवल अपने साथ गुज़ार सकें,अपनी धुन पर ज़िन्दगी को नचा सकें। आपकी कल्पनाओं की ‘तीन ताल’ 16 मात्राओं की नहीं,24 मात्राओं की हो। ताल पर बजने वाले वाद्य आपके अनुसार ध्वनि तरंग निकालते हों। जीवन बंसुरी से आपकी मनोहारिनी तान निकलती हो जो आपको खूब आनंदित करती हो।
अपनी निजता का सम्मान करना अति आवश्यक है। यहीं से आपके आत्मबल का जन्म होता है। आप कल्पनाओं की अवधारणा कर स्वयं को पल्लवित और सशक्त बनाते हैं।
व्यक्तित्व को लचीला बनाइए,पारदर्शी बनाइए,परन्तु अपनी निजता की सीमा रेखा तक….। अपने आस-पास के घेरे को सशक्तिकरण प्रदान कीजिए,क्योंकि वह आपकी क्षमता,उदारता,परिजनों के प्रति प्रेम का प्रतीक है। उन्हें ऊर्जायमान कीजिए क्योंकि,आप भी कहीं-न- कहीं आवश्यकतानुसार प्रकाशित होते हैं,परन्तु सशक्तिकरण करने में खुद शक्तिहीन हो जाएं,ऊर्जा प्रदान करते- करते खुद ऊर्जाहीन हो जाएं,यह तो स्वयं के साथ अन्याय है। खुद को शक्तिवान,ऊर्जावान बनाए रखने के लिए अपनी ‘निजता’ के सूर्य को अस्त मत होने दीजिए। सूर्य-सा सितारा बनिए,चन्द्रमा-सा उपग्रह नहीं।
अपनी ‘निजता’ को चमकाते रहिए और दूसरों की भी ‘निजता’ का सम्मान करिए।।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।