तुम्हारी काली साडी़ पहनना,
मतलब एक घनी अंधेरी काली खामोशी का मेरे अन्तरमन में उतर जाना।
समा जाना मेरी सांसो कि गहराईयो में,
शायद ही एक एसा क्षण हो
जिसमें न आता हो तुम्हारा चेहरा
मेरी आंखो में,
ओर उस काली साडी़ में तो तुम
बैठ जाती हो मेरी नज़रो में
सुरमे कि तरह,
मै भी अछूता नही हूं,
बसा हूं तुम्हारी साडी़ के हर धागे में,
मेरा सर हमेशा तुम्हारे कंधे पर है
तुम्हारे पल्लू के संग,
तुम्हारे सारे बदन से लिपटा हुआ हूं
तुम्हारी साडी़ के संग संग,
तुम नही जा सकती दूर मुझसे
तुम्हारे सारे बदन को ढक दिया है मेरी
काली आंखो ने,
साडी़ के स्वरूप में,
जब जब हवा का झोंका टकराता है
तुम्हारी श्यामा साडी़ से,
तब तब मेरी आंखे मुंद जाती हैं
हवा के झोंके से,
महसूस कर लेती हैं आंखे,
साडी़ ओर पवन के स्पर्श को,
शायद मै फिर मिलूंगा,
इसी तरह,
किसी न किसी रंग में
जो घुल जायेगा मेरी आंखो से
तुम्हारी काली साडी़ में।।
#सतेन्द्र सेन सागर
नाम -सतेन्द्र सेन सागर
साहित्यिक उप नाम- सागर
वर्तमान पता- नई दिल्ली
शिक्षा- बीबीए(मार्केटिंग) , बीए(शास्त्री संगीत)
कार्यक्षैत्र- अर्धसैनिक बल
विधा- मुक्तक, काव्य, दोहा, छंद
सम्मान- साहित्य सागर रचनाकारअन्य उपलब्धिया- आखर नामक काव्य संग्रह मे रचनाए प्रकाशित, देश भर के विभिन्न राज्यो के अखवारो ओर ब्लॉग में रचनाओं का प्रकाशन।
लेखन का उद्देश्य – एक सोच को जन्म देना, प्रेम के प्रति नजरिया बदलाव एवं एक इंकलाबी लेखक बनने का प्रयाश