(मजदूर दिवस पर विशेष)
आज फिर हो रही है
शहर में ही नही
पूरे देश में
मात्र औपचारिकता
जी हाँ
मजदूर दिवस की
औपचारिकता ।
यही तो होता है
हर दिवस पर
टेंट लगाकर ली जाती हैं सभाएं
पहनाई जाती है फूल -मालाएं
और किया जाता है गुणगान
बताया जाता है उन्हें महान ।
खत्म होते ही दिन
देर रात तक फिर
भुला दिया जाता है उन्हें
जिन्हें याद किया था सुबह ही ।
अब नियति और औपचारिकता
ही बन गया है यह सब
फूल कर कुप्पा हो जाते हैं
एक दिन का सम्मान पाकर
और
उस दिन तो कम से कम
भूल ही जाते हैं वे सभी
अपना दुख दर्द।
आयोजक भी हो लेते हैं खुश
इस आभाषी दुनिया में
देकर उन्हें आभाषी सुख ।
गरीब को गरीब
और
मजदूर को तो बने रहना ही है
मजदूर सदा
इसी में भला है उनका भी
और नियंताओं का भी ।
भले ही लेते रहें वह
कितनी ही सुविधा
बदले में देने के लिए
अपना मत – अभिमत ।।
#देवेन्द्र सोनी, इटारसी
कटु सत्य जी