हाल क्या तुझे सुनाऊँ मैं

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sumit
फ़ोन पे मेरा हाल पूछता,
हाल क्या तुझे सुनाऊँ मैं।
पास मेरे आ बैठ जरा तू,
खोल के दिल बतलाऊँ मैं॥
भूल गया तू दिन क्या अपने,
साथ जो हमने बिताए थे
साज-बाज वो गीत कहाँ है,
साथ जो हमने गाए थे।
हाथ में लेकर हाथ बैठ तू,
गीत पुराने गाऊँ मैं।
फ़ोन पे मेरा हाल पूछता,
हाल क्या तुझे सुनाऊँ मैं॥
वो बचपन की मीठी यादें,
याद नहीं तुझको आती
दोस्त नहीं क्या तेरी आँखें,
याद से मेरी भर जाती
हर तस्वीर सँजोई मैंने,
आ तुझको दिखलाऊँ मैं।
फ़ोन पे मेरा हाल पूछता,
हाल क्या तुझे सुनाऊँ मैं॥
अमराई के झूले खाली,
देखते राहें हमारी है
पड़ी हुई है घर के पीछे,
दुपहिया की सवारी है
छुट्टी लेकर जब तू आए,
बातें फिर दोहराऊँ मैं।
फ़ोन पे मेरा हाल पूछता,
हाल क्या तुझको सुनाऊँ मैं॥
बूढ़ी आँखें रस्ता देखें,
बुझने से पहले आजा
उँगली पकड़ के जिसने चलाया,
उनकी तू लाठी बन जा
है कितना अमृत माटी में,
आजा तुझे चखाऊँ मैं।
फ़ोन पे मेरा हाल पूछता,
हाल क्या तुझको सुनाऊँ मैं॥

            #सुमित अग्रवाल

परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।

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