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रात-दिन के मेल से तिथियाँ बदल गई,
हम खड़े ही रह गए वीथियाँ बदल गई।
कागजों में लिख रहे देश इक नया यहां,
संविधान चुप रहा,नीतियाँ बदल गई।
कैसे जान पाता हाल उनका मैं कहो भला,
डाकिया वही रहा,चिठ्ठियाँ बदल गई।
ज़िन्दगी में मौसमों ने ली हैं ऐसी करवटें,
डालियाँ वही रही,पत्तियाँ बदल गई।
उम्र के पड़ाव में घरौंदे टूटते रहे,
अब कहाँ पे ठोर है,बस्तियाँ बदल गई।
क्यों नमक वो खा रहे हैं मीठे दाने भूलकर,
स्वाद अपना छोड़कर चींटियाँ बदल गई॥
#नरेन्द्रपाल जैन,उदयपुर (राजस्थान)
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