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यूँ तो कोई काम नहीं था,
फिर भी तो आराम नहीं था।
तन की ही कीमत ज़्यादा थी,
मन का कोई दाम नहीं था।
उसने जितना नाम कमाया,
जितना उसका नाम नहीं था।
अपने घर से अच्छा जग में,
कोई और मुक़ाम नहीं था।
सोच-इरादे लाखों सारे ,
बस उनका अंजाम नहीं था।
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अपने घर से अच्छा जग में
और कोई मुकाम नहीं था।
बहुत खूब
उम्दा लेखन
अपने घर से अच्छा जग में,
कोई और मुक़ाम नहीं था।
Badhiya