‘बागों में बहार है,कलियों पे निखार है’

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devendr raj suthar
`बसंत` मतलब कवियों और साहित्यकारों के लिए थोक में रचनाएं लिखने का सीजन। बसंत मतलब तितलियों का फूलों पर मंडराने,भौंरे के गुनगुनाने,कामदेव का प्रेमबाण चलाने,खेत में सरसों के चमकने और आम के साथ आम आदमी के बौरा जाने का दिन। बसंत मतलब कवियों व शायरों के लिए सरस्वती पूजन के नाम पर कवि सम्मेलन व मुशायरों के आयोजन का ख़ास बहाना। बसंत मतलब ‘बागों में बहार है,कलियों पे निखार है,हाँ है तो,तो तुमको मुझसे प्यार है’…हर दिल फेंक आशिक़ का ये कहना। बसंत मतलब पत्नियों के भाव में अचानक वृद्धि होना और पतियों को मायके जाने की ‘खुल्लम-खुल्ला’ धमकी देना। बसंत मतलब ‘कुछ कुछ होता है’ की जगह अब ‘बहुत कुछ’ होना। और फिर इस ‘बहुत कुछ’ को पाने के लिए प्रेमी का घर के बर्तन और कपड़े तक धोना। जिस तरह सावन के अंधे को `हरा ही हरा` दिखता है,उसी तरह बसंत के अंधे को `पीला ही पीला` नज़र आता है। बसंत मतलब फेसबुकियों द्वारा कृत्रिम प्रेम दिखाने के लिए रंगीन स्टेटस चिपकाने और खुद को अपने प्रिये की स्मृति में घनानंद घोषित करने का अवसर है। बसंत मतलब बजरंग दल और पिंक दस्ता जैसे संस्कृति रक्षक दलों के मुखियाओं के लिए अपनी छवि में चार चाँद लगाने का सुनहरा मौका है। बसंत मतलब पतझड़ के भूने हुए के लिए शीतल समीर का झोंका,बसंत मतलब जीवन का श्रेष्ठतम अहसास,इसलिए बसंत न केवल युवाओं के लिए अपितु बुजुर्गों के लिए भी ख़ास है। सयाने लोग कह गए हैं कि, आदमी उम्र से नहीं,मन से बूढ़ा होता है। बसंत में महुआ, केवड़ा और टेसू के फूलों की गंध से अभिभूत होकर मन हिलोरे मारने लगता है। सोए हुए अरमान जागने लगते हैं। इस प्यार करने के मौसम में दिल के भीतर से `शानदार महसूस` वाली भावना आने लगती है। सचमुच ये बासंती बहार तो खुशियों का त्योहार है। बसंत में चलने वाली इन हवाओं में लगता है किसी ने भांग मिला दी है,जो सबको मदहोश किए जा रही है। इसके ऊपर से कोयल की कुहू-कुहू और पपिए की पीहू-पीहू सुनकर किसका मन बहक नहीं जाएगा आधी रात को ? इस बसंत ने महंगाई की तरह किसी को शेष नहीं छोड़ा है। सबको इसने अपनी गिरफ्त में ले रखा है। कालिदास,भारवि,विद्यापति,सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,रामधारी सिंह दिनकर, विद्यानिवास मिश्र सहित कई बड़े-बड़े साहित्य के सूरमा और धुरंधरों को इसने अपने जादू से वश में कर रखा है। बिलकुल इसी तरह,जिस तरह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने सभी को ’भाईयों और बहनों’ कहकर अपने जाल में जकड़ रखा है। इन साहित्यजीवियों और रचनाधर्मियों ने बसंत की प्रसन्नता में सारे कीर्तिमान भंग कर दिए हैं। इनके मुंह से बसंत की इतने तारीफें सुनकर बाकी ऋतुओं को बसंत से ’हिस्टीरिया’ होने लग गया है। बसंत तो चार दिन की चाँदनी और फिर अंधेरी रात है। क्षण भर का मज़ा है और फिर ज़िंदगी भर सजा है। आदमी को बसंत के आवेश में अपनी औकात नहीं भूलनी चाहिए। बसंत के चक्कर में यह नहीं भूलना चाहिए कि,इसके बाद गर्मी के गर्म होते तेवरों में तवे पर सेंकी जाने वाली रोटी की तरह तपना ही है। अब भले ही भंवरों की गुन-गुन सुनकर खुश हो लो,प्यारे ! फिर बाद में तो मच्छरों की टें-टें सुननी ही है। और अपना रक्त मच्छरों को दान करना ही है। बसंत को लेकर सभी के अलग-अलग मायने हैं। नेताओं के लिए चुनाव बसंत है। इस बसंत में कई नेता पुष्प (कांटे) की भांति प्रस्फुटित होते हैं और चुनाव के बाद परिणाम जानकर कई नेता बौरा जाते हैं। इस चुनावी रण में बहुतों की हवा निकल जाती है और बहुतों में हवा भर भी जाती है। चुनावी समय में ये नेता कुर्सी के इर्द-गिर्द भौंरे और तितलियों की तरह मंडराते हैं। फूलों के रस का आस्वादन लेने के बाद ये भौंरे विरह की आग में जनता को अकेले छोड़ जाते हैं। और तो और कुछ तो बसंत में अपने वर्चस्व को चमकाने की आस में उल्टा चारा और कोयला खाकर जेल की सलाखों में पतझड़ भोगते हैं। इसी तरह यदि बेरोजगारों के हाथों में नौकरी आए तो उनका बसंत हो,बिना नौकरी के छोकरी तक जाने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। यूं कहिए कि नौकरी के बिना जीवन में पतझड़ ही पतझड़ ही है। कुछ लोगों का इस नौकरी से भी मन नहीं भरता। उनके लिए नौकरी से मिलने वाली तनख्वाह पूर्णिमा का चाँद है,जो महीने के पहले दिन बढ़ी हुई नज़र आती है और फिर धीरे-धीरे छूमंतर होती जाती है। ऐसे असंतुष्ट लोगों के लिए ऊपरी कमाई ही बसंत है। सच तो यह है कि,यदि जेब में विटामिन एम हो तो हर दिन बसंत ही बसंत है। इस विटामिन एम के आगे तो पतझड़ भी मारा जाता है। इसलिए बसंत,तू भी पूंजीपतियों का पर्व कहलाता है।
#देवेन्द्र राज सुथार 
परिचय : देवेन्द्र राज सुथार का निवास राजस्थान राज्य के जालोर जिला स्थित बागरा में हैl आप जोधपुर के विश्वविद्यालय में अध्ययनरत होकर स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैंl 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।