राधा केवल प्रेयसी या…

1
0 0
Read Time2 Minute, 42 Second
kumari archana
राधा कृष्ण के बिन
हमेशा आधी ही रही,
पूर्णता के लिए
वैवाहिक बंध चाहिए,
जो उसे न मिल सका
पर क्यों ?
क्या द्वापर युग में
राजा महराजा और उनकी प्रजा
एक पत्नीधारी थे ?
कोई उपपत्नियाँ नहीं रखते थे,
क्या सवाल का कोई जबाब है ?
प्रेयसी केवल प्रेम करने व
कामपूर्ति  के लिए होती है,
विवाह के लिए नहीं
परन्तु क्यों ?
कृष्ण ने रासलीला तो वृन्दावन में
राधा और गोपी संग रचाई,
पर मथुरा की पटरानी क्यों न बनाई !
विष्णुजी को नारद मुनि का श्राप था,
रामराज्य में सीता का परित्याग
कृष्ण अवतार में राधा से वियोग!
अपराधी तो कृष्ण थे,
पर अपराधन क्यों राधा बनी
जो उसे वैराग जीवन मिला,
विवाहिता का सुख न मिला!
सदियों से पुरूषों द्वारा छलने
की एक प्रथा चली आई,
आज भी चल रही
प्रेयसी प्रेम व कामपूर्ति की,
वस्तु में तब्दील हो गई
जो मान प्रेयसी राधा को
बिन पत्नी बने मिला,
कृष्ण से पहले राधा का नाम जुड़ा
वहीं आज पुरूष के बाद नाम
जब किसी स्त्री का नाम जुड़ता तो,
पिता,परिवार,कुल और गोत्र
की नाम व इज्जत चली जाती
कभी ‘लड़की मित्र’ तो रखनी बन जाती
कहीं ‘ऑनर किलिंग’ तो
कहीं हत्या कर दी जाती,
तो कहीं आत्महत्या को विवश।
समाज ने तो कभी भी प्रेयसी को
धर्मपत्नी का दर्जा न दिया,
लोकतांत्रिक देशों के न्यायालय ने
प्रेयसी को कानूनी हक़ दिया,
विवाहिता समझी जाएगी
बिन पारम्परिक रीति-रिवाजों के भी
यदि पत्नी कर्म निभाती हो।
काश् राधा के युग में
न्याय की सर्वोच्च व पारदर्शी व्यवस्था होती तो,
रुक्मणी की जगह राधा होती॥
                                                   #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला-पूर्णियाँ ( हरिश्चन्द्रपुर) की निवासी हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “राधा केवल प्रेयसी या…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

हद करता है

Sat Dec 23 , 2017
‘गुनाह करके,बेगुनाह बनता है। जीने वाला भी,हद करता है …॥ यूँ न खामोश,समझ लीजिए उसे; जुबाँ अपनी जो,खामोश रखता है …॥ ज़िन्दगी जीना तो,है उसका काम; पल-पल यहाँ,जो मरता है…॥ उबलते दृगों में,नाम पढ़ अपना…; मुझे तो धुँधला-सा,ये दिखता है…॥ गाहे-बगाहे,बरस लीजिए ‘सावन’। तपस का कहर,बेज़ार करता है…॥  #टी.सी.’सावन’ परिचय […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।