काहे का रिश्ता और काहे का दखल..आज मनुष्य इतना स्वार्थी और संवेदनहीन हो गया है कि,रिश्तों की अहमियत नहीं समझ सकता। आज कोई किसी के काम में अनावश्यक तो क्या आवश्यक दखल भी नहीं देता। कहीं बात का बतंगड़,तिल का ताड़ न बन जाए।
कोई किसी पर भरोसा नहीं करता,और करे तो कैसे करे,धोखा और अविश्वास का माहौल है,आस्तीन के कई सांप छिपे हुए हैं। किसी की जरा-सी भी दखलंदाजी निजता में सेंध लगाने जैसी लगती है। आज सास बहू को तो क्या, अपनी बेटी से भी कुछ नहीं कह पाती हैं।
यह सब तो होना ही था,नैतिकता का पतन,मानवीय मूल्यों का ह्रास होता हुआ जीवन,तो कई ऐसी चीजें होती हैं,जो नहीं होनी चाहिए और होती हैं। घर के बुजुर्गों का अनुभव और ज्ञान का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता,क्योंकि वे खुद ही दखल नहीं देते कि,छोटों को उनकी बातें अनावश्यक न लगें।
हां,आज व्यक्ति की इतनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह के कारण संयुक्त परिवार तो बचे नहीं,ऊपर से छोटे-छोटे फ्लैट में रहने के प्रचलन से मिलना- जुलना बंद होने से,हर समय आभासी दुनिया में खुशी ढूंढने से,सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता और हर बात ही दखल देने-सी लगती है। खैर,फिर भी यह बात सत्य है कि अनावश्यक दखल से रिश्तों में बिखराव तो होगा ही,तो न तुम मेरे मामले में दखल दो-न मैं तुम्हारे मामले में…जय राम जी की। ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि,कहीं पुलिस निपटेगी,कहीं वकील,और बीमार पड़ो तो चिकित्सक तो है ही। मैं क्यों घरेलू नुस्खे बताऊं,क्या पता,ये भी दखलंदाजी कहीं अनावश्यक ही लगे।
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।