इन्दौर के भाषाप्रेमी श्री पाटोदी ने दिया ज्ञापन
मुम्बईl
देश की नई शिक्षा नीति पर जाने-माने वैज्ञानिक व `इसरो` के पूर्व अध्यक्ष डॉ.कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन ने आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का मार्गदर्शन लिया हैl
भारत सरकार द्वारा अगले तीस साल के लिए नई शिक्षा नीति निर्धारण का कार्य देश के जाने-माने वैज्ञानिक व `इसरो`(बैंगलोर) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित समिति को सौंपा गया है। मातृभाषाओं और भारतीय भाषाओं के लिए आजीवन प्रयासरत रहे वयोवृद्ध भाषासेवी तथा आचार्यश्री विद्यासागरजी के पचासवें संयम स्वर्ण महोत्सव की राष्ट्रीय समिति के राजनीतिक व प्रशासनिक संयोजक निर्मल कुमार पाटोदी ने कस्तूरीरंगन जी की मुलाकात कन्नड़भाषी आचार्यश्री विद्यासागरजी से करवाने का निश्चय किया,जो देश के बच्चों के चहुंमुखी विकास,देश के विकास के लिए मातृभाषाओं और भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए प्रयासरत रहे हैं। अंतत: इंदौर के निर्मलकुमार पाटोदी के आमंत्रण-पत्र को स्वीकार करते हुए डॉ. कस्तूरीरंगन २० दिसंबर को साथियों के साथ डोंगरगढ़(छत्तीसगढ़) पहुँचे । वहाँ पर विद्यासागर जी से उनकी देश की नई शिक्षा नीति पर अच्छी और लंबी चर्चा हुई। डोंगरगढ़ में श्री पाटोदी ने शिक्षा नीति में परिवर्तन के लिए आचार्यश्री विद्यासागर जी के समक्ष उन्हें ज्ञापन सौंपा। उनके साथ प्रो. टीवी कट्टीमनी,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ट्राइबल केन्द्रीय विश्वविद्यालय(अमरकंटक) के कुलपति डॉ. विनय चंद्रा बी.के., नई शिक्षा नीति समिति के वरिष्ठ तकनीकी सलाहकार और `इसरो` मुख्यालय के सह निदेशक डॉ. पी.के. जैन भी उपस्थित थे।
पद्मविभूषण डॉ. कस्तूरीरंगन ने आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से पूछा-कैसी हो तीस साल के लिए नई शिक्षा नीति? इस पर विद्यासागरजी महाराज बोले-ऐसी नीति बनाइए कि शिक्षा उपभोग व विनिमय की वस्तु न हो। चर्चा में विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति प्रासंगिकता खो चुकी है। अर्थ के द्वारा सब प्राप्त कर सकते हैं,यह भ्रम उत्पन्न हुआ है। वस्तु विनिमय के बदले अर्थ का विनिमय होने लगा हैl कौशल विकास कर देने भर से विद्यार्थी सक्षम हो रहा है,यह जरूरी नहीं है। शिक्षा धन से जुड़ गई है। मुख्य धन तो नैतिकता है। विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूं। इस भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखा जाना चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषाओं में ही हो। ऐसा होने से भारत की एकता मजबूत होगी। शिक्षा में शोधार्थी की रूचि किसमें है,इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोध करता है। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने बताया कि नई शिक्षा नीति का मसौदा शीघ्र ही तैयार कर लिया जाएगा। यह अगले तीस वर्षों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। पूर्व शिक्षा नीति छब्बीस साल पहले बनी थी। अब राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षाविदों और अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों से मिलकर सुझाव लिए जाएंगे।(साभार-वैश्विक हिंदी सम्मेलन)