डूबती हुई सूरज की किरणों के साथ
विदा हुई एक और साल की वनवास यात्रा,
विदा हुई
तारीखों की नदियॉ और
कैलेण्डर का आखिरी महीना,
जो किसी पक्षी की तरह
पंख फड़फड़ा रहा है।
बीत गई
लम्बी वनवास की यात्रा,
प्रासंगिक प्रशनों को छोड़ गई एक और किरण
नए वर्ष के किरण होते ही
सब कुछ बदला-सा लगता है,
लेकिन नहीं बदलता कुछ भी
केवल बदल जाता है
मनुष्य का स्वार्थपूर्ण चेहरा।
नहीं बदला रिक्शे वाले का जीवन,
क्योंकि वह सोचता है
कि कल के लिए मुझे कहां से
नसीब होगी दो वक्त की रोटी।
जब एक वर्ष का सूरज
अस्त होता है तो,
अस्त होता है
एक व्यक्ति का सेवाकाल
लेकिन नहीं खत्म होता,
हिंसा तथा भ्रष्टाचार का
फैला हुआ कैंसर॥
परिचय : प्रभांशु कुमार, इलाहाबाद के तेलियरगंज में रहते हैंl जन्म १९८८ में हुआ है तथा शिक्षा एमए(हिन्दी) और बीएड हैl आपकी सम्प्रति शिक्षा अनुसंधान विकास संगठन(इलाहाबाद) में सम्भागीय निदेशक की हैl आपकी अभिरुचि साहित्य तथा निबंध में हैl आपकी प्रकाशित रचनाओं मेंख़ास तौर से आधुनिकता,खोजता हूं,वक्त और स्मार्ट सिटी ने छीन लिया फुटपाथ सहित काव्य संग्रह-मन की बात में प्रकाशित चार कविताएँ हैंl निबन्ध लेखन में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत होने के साथ ही आकाशवाणी इलाहाबाद से कविताओं का प्रसारण भी हो चुका हैl